उपन्यासकार प्रेमचन्द की सामाजिक चिन्ता

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उपन्यासकार प्रेमचन्द की सामाजिक चिन्ता -  
प्रेमचन्द-युगीन समाज में जो भी ठोस सामाजिक, राजनीतिक स्थितियाँ थीं, उन्हें पूरी तरह ध्यान में रखकर ही प्रेमचन्द ने अपने औपन्यासिक पात्रों की रचना की और इन पात्रों द्वारा अपनी निश्चित सामाजिक-राजनीतिक चिन्ता को सामने रखा। यह अकारण नहीं है कि उनके अधिकांश पात्र किसान-मज़दूर और ज़मींदारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन दोनों के बीच की कड़ी के रूप में सूदखोर, साहूकार, महाजन, सरकारी-ग़ैर-सरकारी कर्मचारी, वकील, अध्यापक, पंडित-पुरोहित भी आते हैं।

इन सबके चरित्र द्वारा प्रेमचन्द ने भारतीय समाज का एक यथार्थ चित्र अपने उपन्यासों में प्रस्तुत किया है। लेकिन यह सब करते हुए उनकी दृष्टि शोषित-उत्पीड़ित किसान-मज़दूर और पददलित निम्न जातियों की वास्तविक मुक्ति की ओर ही अधिक रही है। इस मुक्ति में सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक मुक्ति के साथ ही अज्ञान से मुक्ति एक महत्त्वपूर्ण मुद्दे के रूप में प्रेमचन्द के सामने थी।
सरिता राय के अनुसार इससे यह तथ्य एकदम स्पष्ट है कि उनकी सामाजिक चिन्ता की पृष्ठभूमि अत्यन्त व्यापक थी। इसीलिए प्रेमचन्द को सामाजिक सरोकारों का रचनाकार माना जाता है।

 

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9788170554530
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