उर्दू ग़ज़ल एवं भारतीय मानस व संस्कृति - काव्य और साहित्य में सार्वभौमिकता और स्थानीयता में संघर्ष बहुत पुराना है परन्तु साहित्य की विशिष्टता स्थानीय सिद्धान्तों से ही निर्धारित होती है। उर्दू मिलीजुली साहित्यिक और सांस्कृतिक परम्पराओं के भीतर से उभरी है और स्वयं भी अपना चित्रांकन करती है। हिन्दी व बंगाली और मराठी से उसका सम्बन्ध मूलभूत एवं आधारभूत है। उसका मानस एवं स्वभाव मिलाजुला हिन्दुस्तानी है। परन्तु उसमें अरबी और फ़ारसी प्रभावों का रंग चोखा है। उसका काव्यशास्त्र शेष तमाम भारतीय भाषाओं से इस दृष्टि से पृथक है कि उसने अरबी-फ़ारसी तत्त्वों को इंडिक से आबद्ध करके एक नवीन संस्कृति निर्मित की है जिसके कारण यह न अरबी फ़ारसी की कार्बन कॉपी है न संस्कृत की। यह पुस्तक पाँच अध्यायों पर आधारित है। प्रथम अध्याय भारतीय संस्कृति के विकास विशेषकर समन्वयवादी भारतीय संस्कृति और उसके तमाम लक्ष्य बिन्दुओं पर आधारित है। इसको दृष्टि में रखना इसलिए आवश्यक है कि यही वह स्रोत है जिससे उर्दू पैदा हुई। संक्षेप के अन्तर्गत केवल उन बिन्दुओं को उभारा गया है जो आने वाले अध्यायों के चिन्तन-मनन की आधारशिला हैं। ये तमाम अध्याय एक गम्भीर मनन की कड़ियाँ हैं। प्रत्यक्षतः अध्यायों में विभाजन केवल विश्लेषण या प्रबन्ध के लिए है। एक ऐसे कालखण्ड में जब सदियों की संस्कृति पर प्रश्न चिह्न लग गया है और वही भाषा जो भारतवर्ष में सबसे बड़ा सांस्कृतिक पुल थी ग़ैर तो ग़ैर, स्वयं उसके नाम लेने वाले सम्प्रदायिकता फैलाने में लगे हैं, इन परिस्थितियों में इस प्रकार का काम दीवाने के स्वप्न जैसा है। मनुष्य का कर्तव्य बीज डालना और अपनी सी किये जाना है: राज़े हयात पूछ ले ख़िज़्रे ख़जिस्ता गाम से ज़िन्दा हर एक चीज़ है कोशिशे नातमाम से.. —भूमिका से
"गोपीचन्द नारंग -
जन्म: 11 फ़रवरी, 1931 को टुक्की, बलूचिस्तान में।
शिक्षा: 1958 में दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट तथा इंडियाना यूनिवर्सिटी से भाषा-विज्ञान मंस उच्च शिक्षा।
80 पुस्तकों के लेखक-आलोचक, शोध, भाषा-विज्ञान में निष्णात प्रो. नारंग ने सेंट स्टीफेन्स कॉलेज, दिल्ली में अध्यापन की शुरुआत की, तदुपरान्त दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में स्थानान्तरित हो गये। 1974 से 1985 तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रोफ़ेसर और कार्यवाहक उपकुलपति रहे। विसकॉन्सिन यूनिवर्सिटी (1963-65, 1968-70) में और कुछ समय मिनीसोटा यूनिवर्सिटी और ओसलो यूनिवर्सिटी, नॉर्वे में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रहे। साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष और नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ़ उर्दू एवं उर्दू अकादमी, दिल्ली के वाइस चेयरमैन भी रहे हैं।
पुरस्कार-सम्मान: पद्मश्री एवं पद्म भूषण से अलंकृत। साथ ही पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान 'तमग़-ए-इम्तियाज़' से विभूषित। लखनऊ का 'उर्दू हिन्दी साहित्य कमेटी पुरस्कार' (1984) और 'ग़ालिब पुरस्कार', 'अमीर ख़ुसरो सम्मान' (शिकागो), 'कनाडा उर्दू पुरस्कार' (टोरंटो), उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी का 'अखिल भारतीय मौलाना अबुल कलाम आज़ाद पुरस्कार' और महाराष्ट्र उर्दू एकेडमी का 'सन्त ज्ञानेश्वर पुरस्कार', साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा भारतीय ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी सम्मान से भी सम्मानित हैं। सेंट्रल यूनिवर्सिटी हैदराबाद, मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद और जामिया मिल्लिया इस्लामिया द्वारा डी.लिट्. की मानद उपाधि। दिल्ली विश्वविद्यालय एवं जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रोफ़ेसर एमेरिटस।
डॉ. ख़ुर्शीद आलम (अनुवादक)
उर्दू कहानियों के एक सशक्त हस्ताक्षर, हिन्दी पर भी समान अधिकार। तीस से अधिक पुस्तकों के लेखक, सम्पादक एवं अनुवादक। कई कहानियों का हिन्दी के अतिरिक्त, मराठी, गुजराती, तमिल, कन्नड़ और अंग्रेज़ी में अनुवाद प्रकाशित। हिन्दी और उर्दू को अनुवाद के माध्यम से जोड़ने में सक्रियता से संलग्न। उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी, लखनऊ द्वारा पुरस्कृत। उर्दू साहित्य की सेवा के लिए ऑल इंडिया मीर एकेडमी, लखनऊ द्वारा 'इम्तियाज़-ए-मीर' सम्मान तथा हिन्दी साहित्य की सेवा के लिए भारत सरकार द्वारा हिन्दीतर लेखक भाषी पुरस्कार।
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