उत्तर प्रदेश का स्वतंत्रता संग्राम : कुशीनगर
भारत प्रारंभ से ही एक धन संपन्न देश रहा है, जो अपनी भौगोलिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विशेषताओं के कारण विश्व प्रसिद्ध रहा। इसी कारण अनेक विदेशी जातियों ने समय-समय पर यहाँ आक्रमण कर शासन स्थापित किया। क्रमशः यहाँ हूणों, यवनों, अफ़गानियों तथा मुग़लों ने लंबे समय तक शासन किया। इसके पश्चात् ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत आगमन भी मात्र लाभ की भावना से ही प्रेरित था। अंग्रेज़ों ने भी भारत पर कई वर्षों तक राज्य किया ।
एक प्रशासनिक भौगोलिक इकाई के रूप में भारत के प्रांत उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर स्थित पूर्वांचल में अनेक ग्रामीण अंचलों को समेटे हुए 2873.5 वर्ग किमी. की क्षेत्रफल में कुशीनगर जनपद बसा हुआ है । सर्वाधिक पिछड़े क्षेत्रों में गिने जाने वाले कुशीनगर जनपद का अतीत अत्यंत गौरवशाली रहा है । इतिहास लेखन की दिशा का नियंत्रण तथ्यपरक वैचारिक स्वतंत्रता के आधार पर ही होता है । प्रस्तुत प्रबंध में यथा शक्ति वैचारिक स्वतंत्रता की इसी परिधि में रहते हुए कुशीनगर जनपद का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में एक समग्र दृष्टि से देखने का प्रयास किया है ।
वस्तुतः प्रस्तुत प्रबंध में कुशीनगर जनपद के स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद हुए वीरों के आंदोलन को संकलित कर जनपद के आंदोलन में योगदान को चित्रित करने का साहसिक प्रयास किया गया है। देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए कुशीनगर ज़िले के भी तमाम सपूतों ने जंग-ए-आज़ादी में अपना लहू बहाया। उनके इंकलाब की आवाज़ को दबाने के लिए अंग्रेज़ों ने कुछ को जिंदा जलवा दिया। कुछ को गोलियों से भून दिया। इन्हीं में से कुछ ऐसे भी रहे जिन्हें कारागार में डाल दिया गया। उस ज़माने में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ बगावत करने वालों को बूटों से भी मारने की सजा दी जाती थी। ज़िले में कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें गुज़री बातें याद करके आज भी उनके शरीर में सिहरन दौड़ जाती है ।