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Bharatiya Jnanpith
वहीं रुक जाते
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"वहीं रुक जाते -
हिन्दी के प्रतिष्ठित कथाकार नरेन्द्र नागदेव की नवीनतम कहानियों का संग्रह है 'वहीं रुक जाते'। कथाकार ने इनमें मानवीय मूल्यों के विघटन से लेकर सर्वग्राही भौतिकतावाद और उससे उत्पन्न आँच में झुलसती संवेदनाओं का जीवन्त चित्रण किया है। उनकी कहानियों में पात्रों के अन्तर्मन ऊपरी तौर पर जहाँ एक ओर अपने परिवेश से संघर्षरत हैं वहीं स्वयं अपने से भी। कथ्य के सुनियोजित संयोजन के साथ ही कहानियों का एक आत्मीय सफ़र जारी रहता है— यथार्थ और फैण्टेसी के बीच, सही और ग़लत के बीच, वर्तमान और अतीत के बीच।
नागदेव की ये कहानियाँ कहीं सामाजिक सन्दर्भों को छूती हुईं मानवीय मूल्यों की प्रश्नाकुलता में विराम लेती हैं तो कहीं वैयक्तिक अनुभव के सामाजिक सन्दर्भों में।
शिल्प की महीन बुनावट हो या भावनात्मक स्पर्श वाली मोहक भाषा हो— हर दृष्टि से एक भिन्न धरातल पर खड़ी कहानियों का संकलन है— 'वहीं रुक जाते'।
नरेन्द्र नागदेव का यह कहानी-संग्रह प्रकाशित करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है।
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ISBN
8126312028
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Bharatiya Jnanpith
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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