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वायुपुरुष - 
वायुपुराण में उनचास मरुतों का उल्लेख है। मरुतों को मरुत् होने का वर मिला तथा पिता के वाक्य से उनका देवता होना और वायु के कन्धे पर रहना बताया गया है। "मरुत्प्रसादी मरुतां दित्यादेवाश्च संभवाः। कीर्त्यन्ते चाथ गणास्ते सप्तसप्तकाः । देवत्वं पितृवाक्येन (ण) वायु स्कन्धेन चाश्रमः।" (वायुपुराण, 134) 
वायु के अनेक पर्याय प्राच्य ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं और सभी पर्यायों की अपनी महत्ता और व्यवस्था भी उल्लिखित है। इन सबके विभिन्न स्वरूपों के बावजूद जो एक स्थायी और सभी स्वरूपों को सामान्य गुणधर्मिता प्राप्त होती है, वह है—गति, पराक्रम, विद्या और प्राण तत्त्व के रूप में स्पष्ट पहचान। भृगु कहते हैं (184.4) — प्राणियों का शरीर पंच महाभूतों का ही संघात है। इसमें जो चेष्टा या गति है, वह वायु का भाग है जो खोखलापन है, वह आकाश का अंश है; ऊष्मा (गर्मी) अग्नि का अंश है: लोह आदि तरल पदार्थ जल के अंश हैं। भृगु स्पष्ट कहते हैं कि सारा स्थावर जंगम संसार पंचभूतों से ही युक्त है। सारा संसार ऊर्जा से संचालित है, ऊर्जा का नाम प्राण है। कठोपनिषद् में कहा गया है— यदिदं किंचजगत् सर्वं प्राण एजति निःसृतम्— यह जो मारा जगत दिखाई देता है, यह प्राण के स्पन्दन से निकला है (पृ. 140) "पुरुष जो प्राणन करता है (मुख या नासिका द्वारा वायु को बाहर निकालता है) वह प्राण है" (पृ. 43 )। यजुर्वेद में 'अग्ने आयुरसि'— यानी अग्नि तू आयु है (5/2) कहा गया है। यहाँ आयु पुराणों में उर्वशी और पुरुरवा का पुत्र माना गया है। ऊपर कही गयी बातों के परिप्रेक्ष्य से कवि उपेन्द्र कुमार 'वायुपुरुष' का विस्तार रचते हैं। पंचभूतों में से एक तत्त्व 'वायु' को अपने प्रबन्ध-काव्य का मुख्य नायक बनाते हैं और उसकी यति-गति के साथ उनका कविमन बह चलता है। किन्तु इस बहने में वे कोरी काल्पनिकता का सहारा नहीं लेते बल्कि भारतीय और विदेशी मिथकों का पाठ-पुनःपाठ करते हुए एक नायक 'चरित्र' का निर्माण करने का प्रयास करते हैं, जो व्यक्त और अव्यक्त स्वरूप में इस सृष्टि में विद्यमान है। अनेक मिथकों का एक सम्यक् चरित वायुपुरुष।
इस प्रबन्ध काव्य में कवि विभिन्न कथाओं-पुराकथाओं से हमारी यात्रा को उस समकालीन वैश्विक संकट और चुनौती के सामने ला खड़ा करता है जो प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण और पारिस्थितिकी के क्षय से जुड़ा है और जो समस्त सृष्टि के प्राण का संकट बन गया है। जिसका कारण कोई और नहीं, हम ही हैं।
संसार के मंगल की कामना करता यह प्रबन्ध काव्य सहृदय पाठकों को पसन्द आयेगा, ऐसी आशा है।

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उपेन्द्र कुमार (Upendra Kumar )

"उपेन्द्र कुमार - जन्म: सितम्बर, 1947, बक्सर, बिहार। शिक्षा: इंजीनियरिंग स्नातक, विधि स्नातक। सरकारी सेवा: 1972 की भारतीय प्रशासनिक सेवा (इत्यादि) प्रतियोगी परीक्षा के द्वारा सिविल सर्विसेस में नियुक्ति, विभिन्न मन्त्रालयों में भिन्न-भिन्न ज़िम्मेदारियों के साथ 35 वर्ष तक उत्कृष्ट सेवा। प्रधान निदेशक, रक्षा मन्त्रालय के पद से सेवानिवृत्त। साहित्यिक गतिविधियाँ: पहला कविता संग्रह 1979 में आया, तब से अब तक दो ग़ज़ल संग्रह और नौ कविता संग्रह प्रकाशित। इनमें प्रमुख हैं— अपना घर नहीं आया और ख़ुशबू उधार ले आये (ग़ज़ल-संग्रह), प्रतीक्षा में पहाड़, उदास पानी, मैं बोल पढ़ना चाहता हूँ (लम्बी कविता, दिल्ली साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत), गहन है यह अन्धकारा (लम्बी कविताओं का संग्रह), नंगे पाँव चाँदनी आदि और बहुचर्चित प्रबन्ध काव्य 'इन्द्रप्रस्थ'। हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशनों द्वारा प्रचुर एवं उत्कृष्ट साहित्य की रचना करने वाले प्रसिद्ध कवि जिनकी चर्चा वर्तमान समय के साहित्यिक मूल्यांकन के लिए आवश्यक है। देश-विदेश की यात्राओं के दौरान वहाँ के साहित्यकारों से परिचर्चा तथा उन देशों में रचनाओं के अनुवादों का प्रकाशन एवं प्रसारण। प्रमुख सम्मान: काव्य रचना सम्मान (महर्षि गन्धर्व वेद विश्व विद्यापीठ), साहित्यिक क्षेत्र में योगदान के लिए नेशनल प्रेस इंडिया का सम्मान, साहित्यिक कृति सम्मान (हिन्दी अकादमी, दिल्ली), साहित्यकार सम्मान 2003-2004 (हिन्दी अकादमी, दिल्ली) और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त सम्मान 2016। "

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