विचार और वितर्क
विचार और वितर्क -
रामविलास शर्मा हिन्दी-जगत् में प्रखर मार्क्सवादी समीक्षक और विचारक के रूप में प्रख्यात रहे हैं। दिवंगत होने के बाद आदरवश अब उन्हें कभी-कभी ऋषि मार्क्सवादी भी कहा जाने लगा है। उनकी सुदीर्घ रचना यात्रा के अन्तिम चरण में लगभग 1500 पृष्ठों में मुद्रित उनकी विशाल कृति 'भारतीय संस्कृति और हिन्दी-प्रदेश' दो जिल्दों में प्रकाशित हुई है। इस कृति में भारतीय समाज, साहित्य, दर्शन साधना, शासन व्यवस्था, राजनीति, व्याकरण, चिकित्सा विज्ञान, संगीत शास्त्र आदि के सम्बन्ध में उनका समस्त चिन्तन और अध्ययन साकार हो उठा है। रामविलासजी 'संस्कृति' के अन्तर्गत इन सभी विषयों को समाहित करते हैं। भारतीय संस्कृति क्या है? उसके मूल स्रोत क्या हैं? उसके प्रगतिशील तथ्यों की पहचान क्यों ज़रूरी है? पश्चिमी एशिया से उसके क्या सम्बन्ध रहे हैं? नये समाज के निर्माण में उसकी क्या भूमिका हो सकती है? उसके निर्माण में हिन्दी-प्रदेश की क्या भूमिका रही है? लोक-मानस से उसका क्या सम्बन्ध है? आज उसका अध्ययन क्यों आवश्यक और प्रासंगिक है? भारतीय संस्कृति की उदात्त परम्परा किस रूप में आधुनिक भारतीय साहित्य में सुरक्षित है? इन प्रश्नों पर उन्होंने इस कृति में पूरी सजगता के साथ विस्तार से विचार किया है। इस सन्दर्भ में उनकी स्थापनाओं का विवेचन-विश्लेषण करने के लिए आवश्यक है कि पहले हम उनकी स्थापनाओं के मूल बिन्दुओं को सामने रखें।
इन निबन्धों को लिखने के क्रम में मुझे भी बहुत कुछ सीखने और समझने का अवसर मिला है। मेरा भी मानसिक क्षितिज विस्तृत हुआ है। मैं समझता हूँ कि यह कृति हिन्दी के सामान्य पाठकों और विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
- रामचन्द्र तिवारी