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Bharatiya Jnanpith

विपश्यना

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विपश्यना    -  
कौन हूँ? क्यों हूँ? मुझे क्या चाहिए? जीवन में सुख की परिभाषा क्या है?
'विपश्यना' अपने भीतर के प्रकाश में बाहर के विश्व को देखना है—ये विशेष प्रकार से देखना, ये जीना, ये सत्य के अभ्यास; यही उपन्यास की तलाश है, यही तलाश लेखिका की भी! उपन्यास में दो नायिकाएँ हैं—
दोनों ही अपने को नये सिरे से खोजने निकली है। एक को अपने को पाना है तो दूसरी को भी आख़िर अपने तक ही पहुँचना है, भले ही रास्ता माँ को खोजने का हो।
पूरा उपन्यास, माँ के लिए तरसता एक मन है; क्या कीजिये कि जहाँ सबसे ज़्यादा कुछ निजी था, कुछ बहुत गोपनीय, वहीं से उपन्यास आरम्भ हुआ। लिखते समय, लेखिका पात्रों के साथ इस कथा-यात्रा में सहयात्री बनती है, मार्गदर्शक नहीं।
इस उपन्यास में भोपाल गैस त्रासदी जितना कुछ है; उतनी विराट मानवीय त्रासदी को महसूस करना, अपने मनुष्य होने को फिर से महसूस करने के जैसा है। जो जीवन बोध था, जो दुःख था, जो प्रश्न थे अब 'विपश्यना' आपके हाथों में है।

ISBN
9789355181572
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Bharatiya Jnanpith
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Publication Bharatiya Jnanpith
इंदिरा दाँगी (इंदिरा दाँगी)

इंदिरा दाँगी

जन्म 23 फरवरी, 1980 को ज़िला—दतिया, मध्य प्रदेश में हुआ। आपने हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया है।

देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कहानियाँ, नाटक आदि रचनाएँ प्रकाशित। आपकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘हवेली सनातनपुर’, ‘रपटीले राजपथ’ (उपन्यास); ‘बारहसिंगा का भूत’, ‘शुक्रिया इमरान साहब’ (कहानी); ‘आचार्य’ (नाटक) आदि।

आपकी कहानियों के अनुवाद अंग्रेज़ी, उर्दू, मलयालम, ओड़िया, तेलगू, संथाली, कन्नड़, मराठी सहित कई भाषाओं में प्रकाशित।

आप 'राष्ट्रीय पुरस्कार' (केन्द्रीय साहित्य अकादेमी), 'भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन अनुशंसा पुरस्कार', 'बालकृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार' (साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश), 'रमाकांत स्मृति पुरस्कार' के अलावा अन्य कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं।

ई-मेल : mukesh219701489@gmail.com 

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