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व्यावसायिक हिन्दी

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व्यावसायिक हिन्दी - 
हिन्दी भारत की सम्पर्क भाषा के साथ-साथ राजभाषा भी है। इस कारण यह देश के प्रमुख सरकारी कार्यालयों में बहुधा प्रयोग में आती रहती है। इस पुस्तक में सरकारी भाषा के पत्रों के नमूनों के साथ-साथ उनकी कई कार्य प्रणालियों को भी दर्शाया गया है, जिससे इसके अध्येता उन प्रक्रियाओं से भी अवगत हो सकें, जिसकी आवश्यकता सरकारी कर्मचारियों को पड़ती रहती है। हिन्दी देश-विदेश में होने वाले व्यवसाय की भी भाषा है, इसीलिए व्यावसायिक पत्र लेखन को भी इस पुस्तक में स्थान में दिया गया है। हिन्दी भाषा में नौकरी प्राप्त करने के लिए आवेदन करने पड़ते हैं, इसके लिए आवेदन-पत्र कैसे करें? इसकी भी जानकारी दी गयी है। नौकरी पाने के लिए अच्छा बायोडाटा बनाना भी ज़रूरी होता है। अतः स्ववृत्त (बायोडाटा) बनाने की विधि भी बतलायी गयी है। बाज़ार में सामान (वस्तु) बेचने के लिए विज्ञापन का होना भी ज़रूरी है। अतः विज्ञापन लेखन भी बताया गया है। सरकारी काम-काजों में प्रतिवेदन तैयार करना, प्रतिष्ठित व्यक्तियों से इंटरव्यू लेना भी सिखाया गया है। सरकारी टिप्पण तथा संक्षेपण भी दिये गये हैं। पारिभाषिक शब्दावली का ज्ञान, अनुवाद की विधि तथा सम-सामयिक-निबन्ध इस पुस्तक की उपयोगिता को सार्थक बनायेंगे।
व्यावसायिक पत्र सामान को मँगाने, भेजने, बिल के भुगतान, माल खराब होने पर शिकायत, माल छुड़ाने पर शिकायत, माल न पहुँचने पर क्रय-आदेश निरस्त करने और व्यवसाय से सम्बन्धित अन्य विषयों के सम्बन्ध में लिखे जाते हैं। व्यावसायिक पत्रों का सम्बन्ध व्यावसायिक संस्थान, संस्था एवं व्यक्ति से भी हो सकता है और उन ग्राहकों से भी जिनके यहाँ उनका माल गया है और जिनकी अच्छाई-बुराई का सम्बन्ध केवल उनसे ही जुड़ा हो।
आधुनिक काल में यातायात एवं सन्देश भेजने के साधनों के विकास के साथ व्यापार का क्षेत्र भी काफ़ी व्यापक और विस्तृत हुआ है। आज व्यापार का क्षेत्र किसी ग्राम, क़स्बा, नगर, राज्य या देश की सीमा में ही बँधकर नहीं रह गया है, अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक फैल गया है। संसार के बड़े-बड़े शहरों में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेले अपने माल को खपाने, बेचने तथा विश्व की व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में अपने माल को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के साथ-साथ कम क़ीमत में देने के लिए ही आयोजित किये जा रहे हैं। यह प्रतियोगिता का युग है और आज के युग में केवल माल ही अच्छा नहीं के होना चाहिए, क़ीमत भी अन्य देश के व्यापारिक संस्थानों अथवा विश्व मार्केट के मुकाबले कम और सही होनी चाहिए। पत्र-व्यवहार से एक व्यापारी को दूसरे व्यापारी से विशेष परिस्थितियों में व्यक्तिगत भेंट की आवश्यकता भी पड़ सकती है और यदि कोई व्यापार या माल के सम्बन्ध में भ्रान्ति हो, तो दूर की जा सकती है। -पुस्तक से

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