यादों के गलियारे में - 'यादों के गलियारे में' प्रियदर्शी ठाकुर 'ख़याल' का नवीनतम संकलन है। ये उर्दू के शायर और हिन्दी के कवि भी हैं। स्वभावत: इस संकलन के चार खण्ड हैं, जिनमें क्रमशः उनकी ग़ज़लें, कविताएँ तथा नज़्में, ख़यालों के कुछ टुकड़े और बाई जूई से बातचीत की एक श्रृंखला दी गयी है। मेरी दृष्टि में चारों खण्डों में सबसे महत्त्वपूर्ण खण्ड पहला है, जिसमें वास्तविक स्थितियों से परिचित करानेवाली अनेक ग़ज़लें हैं। 'ख़याल' की ग़ज़लों के कई संग्रह प्रकाशित हैं। ग़ज़लों में वे उनके अनुशासन का पूरा निर्वाह करते हैं, यानी उनकी ग़ज़ल का प्रत्येक शेर आज़ाद होता है। बाई जूई 8वीं-9वीं शताब्दी के चीन के कवि थे, जिन्होंने असंख्य कविताएँ लिखीं। उनकी कविताएँ ऐसी हैं कि उनको पढ़ने पर लगता है कि ये आज की लिखी हुई हैं। एक तरफ़ भरपूर रचनात्मकता और दूसरी तरफ़ घनघोर ताज़गी। स्पष्ट है कि वे अपने ज़माने से बहुत आगे थे। 'ख़याल' ने संकलन के अन्तिम खण्ड में उन्हीं से बातचीत करते हुए अनेक प्रसंगों पर अनेक कविताएँ लिखी हैं, जो परम्परागत ढंग की न होकर अनेकानेक स्थितियों और प्रसंगों को समेटे हुए हैं। 'अगली पीढ़ी के कष्ट' शीर्षक कविता के अन्तिम बन्द की अन्तिम पंक्ति में 'ख़याल' ने जो व्यंग्य किया है, वह बिल्कुल सटीक है। प्रमाण यह कि 'बेहद आज़ादी' का फल आज सम्पूर्ण भारत की जनता भुगत रही है। निस्सन्देह 'ख़याल' साहब इस संकलन के लिए बधाई के पात्र हैं।—नंदकिशोर नवल
जन्म : 1946, मोतीहारी; मूल निवासी—सिंहवाड़ा, दरभंगा (बिहार)।
पटना विश्वविद्यालय तथा दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में क्रमश: स्नातक तथा उत्तर-स्नातक।
तीन वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के भगत सिंह कॉलेज में इतिहास का अध्यापन; 1970 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चुने गए जिसके बाद 36 वर्षों तक राजस्थान सरकार एवं भारत सरकार में कार्यरत रहे तथा 2006 में भारत सरकार में भारी उद्योग व लोक उद्यम मंत्रालय के सचिव-पद से सेवानिवृत्त हुए। सन् 2006-08 के दौरान यूरोप के लुब्लियाना नगर में स्थित ‘इंटरनेशनल सेंटर फ़ॉर प्रोमोशन ऑफ़ एंटरप्राइजेज’ के महानिदेशक रहे।
सरकारी मुलाज़िम रहते हुए भी ख़याल आजीवन साहित्य-साधना से जुड़े रहे। इनकी कविताओं, नज़्मों और ग़ज़लों के प्रकाशित कृतियाँ हैं : ‘टूटा हुआ पुल’, ‘रात गए’, ‘धूप तितली फूल’, ‘यह ज़बान भी अपनी है’, ‘इंतखाब’, ‘पता ही नहीं चलता’, ‘यादों के गलियारे में’, ֹ‘रानी रूपमती की फ़िल्म कथा’ चर्चित उपन्यास का नाम है।
क्लासिकी चीनी कविता के अग्रणी हस्ताक्षर बाइ जूई की दो सौ कविताओं के इनके हिन्दी अनुवाद ‘तुम! हाँ, बिलकुल तुम’ तथा ‘बाँस की कहानियाँ’ नामक संकलनों में 1990 के दशक में प्रकाशित हुए और बहुप्रशंसित रहे। बाद के वर्षों में ‘ख़याल’ ने कई गद्य पुस्तकों का अनुवाद भी किया जिनमें तुर्की के नोबेल-विजेता ओरहान पामुक के उपन्यास ‘स्नो’ का हिन्दी अनुवाद विशेष उल्लेखनीय है।
‘ख़याल’ उर्दू के जाने-माने वेबसाइट ‘रेख्ता ऑर्ग’ में सम्मिलित शायर हैं और इनकी ग़ज़लें जगजीत सिंह, उस्ताद अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन, डॉ. सुमन यादव आदि गा चुके हैं।