यह हिन्दी गज़ल है

In stock
Only %1 left
SKU
9789357751728
Rating:
0%
As low as ₹240.00 Regular Price ₹300.00
Save 20%
"यह हिन्दी ग़ज़ल है वरिष्ठ शायर नन्दलाल पाठक की ग़ज़ल की नयी पुस्तक है। इसमें शामिल ग़ज़लें दरवारों और महफ़िलों की शान बढ़ाने वाली नहीं, बल्कि आम जन-जीवन के सम्बन्धों, सरोकारों, स्वप्न और संघर्षों को अपनी ज़मीन पर अपनी ज़ुबाँ में व्यक्त करने वाली ग़ज़लें हैं। इसलिए ये सहज ही जिस तरह अपने मेयार के साथ आकर्षित करती हैं, उसी तरह ज़ेहन में चुपके-से ठहर जाती हैं । इन ग़ज़लों का दायरा बहुत बड़ा है। ये घरों-परिवारों की बात करते अपना हर सुख-दुःख साझा करती हैं तो खेतों-खलिहानों के बीच अपने ख़ास जीवन-रागों में तब्दील हो जाती हैं। नदियों-पहाड़ों के सौन्दर्य की इमेज तो बनती ही हैं, उनके रूप-रंग-रस- गन्ध का एक अनदेखा अक्स भी रचती हैं। इश्क मजाज़ी हो या हक़ीक़ी उसे बेफ़िक्र फ़क़ीरी अन्दाज़ में क्या करती हैं। ये जब सड़कों-चौराहों पर चलती हैं तो ख़ाली मन, ख़ाली हाथ नहीं चलतीं, अपने समय-समाज से दो-चार होती हैं; विसंगतियों-विडम्बनाओं की शिनाख्त करती हैं; हक़ के ख़िलाफ़ जो, उससे पुरजोश सवाल भी करती हैं। ये ऐसी ग़ज़लें हैं जिन्हें हिन्दी की खाँटी ग़ज़लें कह सकते हैं कि ये अरबी-फ़ारसी-उर्दू आदि भाषाओं के लफ़्ज़ों से लबरेज़ नहीं, बल्कि तत्सम और तद्भव शब्दों से अपनी काया को निर्मित करती हैं। और यही वजह कि ये क़रीब से ही नहीं, बहुत दूर से भी पहचानी जा सकती हैं। ‘एक घटना नयी हो गयी/उम्र अब मुद्दई हो गयी' जैसे कई मारक शेर कहने वाले एक अनुभवी शायर की इस पुस्तक के बारे में बेलाग कह सकते हैं कि यह एक ऐसी हासिल मिसाल है, जिसमें पढ़ने वाले जीवन का खो चुका जो बहुत कुछ, भाषा में खो रहे जो बहुत कुछ, उन्हें ढूँढ़ने को जुनून ही नहीं, उत्स और मक़ाम भी पा सकते हैं। "
ISBN
9789357751728
Write Your Own Review
You're reviewing:यह हिन्दी गज़ल है
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

डिज़ाइन और विकास: Octagon Technologies LLP