व्यंग्य शब्द को साहित्य से जोड़ने अर्थात् व्यंग्य को साहित्य का दर्जा दिलाने में जिन इने-गिने लेखकों की भूमिका रही है, उनमें शरद जोशी का नाम सबसे पहले आने वाले लेखकों में से एक है। अपनी चिर-परिचित शालीन भाषा में वे यही कह सकते थे कि 'मैंने हिन्दी में व्यंग्य - साहित्य का अभाव दूर करने की दिशा में यथासम्भव प्रयास किया है।' पर सच तो यह है कि उन्होंने इस दिशा में निश्चित योगदान दिया - गुणवत्ता और परिमाण, दोनों दृष्टियों से। उन्होंने नाचीज़ विषयों से लेकर गम्भीर राष्ट्रीय - अन्तरराष्ट्रीय मसलों तक की बाक़ायदा ख़बर ली है। रोज़मर्रा के विषयों में उनकी प्रतिक्रिया इतनी सटीक होती है कि पाठक का आन्तरिक भावलोक प्रकाशित हो उठता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि शरद जोशी ने हिन्दी के गम्भीर व्यंग्य को लाखों लोगों तक पहुँचाया। प्रस्तुत कृति यथासम्भव में उनके सम्पूर्ण साहित्य में से सौ बेहतरीन रचनाएँ, स्वयं उनके ही द्वारा चुनी हुई, संकलित हैं ।
उनका यह अपूर्व, अनोखा संग्रह व्यंग्य-साहित्य के पाठकों के लिए अपरिहार्य है। दूसरे शब्दों में, यथासम्भव का हवाला दिये बिना आधुनिक भारतीय व्यंग्य-साहित्य की चर्चा करना ही सम्भव नहीं है।
प्रस्तुत है इस महत्त्वपूर्ण व्यंग्य-संग्रह का नवीन संस्करण ।
"शरद जोशी -
एक प्रबुद्ध, स्वतन्त्र और बेबाक पत्रकार एवं र व्यंग्यकार शरद जोशी का जन्म 21 मई 1931 को उज्जैन, म.प्र. में हुआ ।
पत्रकारिता, आकाशवाणी और सरकारी नौकरी के बाद उन्होंने लेखन को ही अपना जीवन बना लिया । 'नयी दुनिया' से उन्होंने लेखन की शुरुआत की। 1980 में 'हिन्दी एक्सप्रेस' के सम्पादन का दायित्व सँभाला। बाद में 'नवभारत टाइम्स' में दैनिक व्यंग्य लिखकर वे देश भर में चर्चित हो गये। गद्य (व्यंग्य) को कविता की तरह पढ़कर कवि-सम्मेलनों में मंच लूटने की भी उन्होंने महारत हासिल की।
जोशी जी की प्रमुख कृतियाँ हैं-जीप पर सवार इल्लियाँ, रहा किनारे बैठ, मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ, पिछले दिनों, किसी बहाने, परिक्रमा, यथासम्भव, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, यत्र तत्र सर्वत्र और यथासमय। अन्तिम चार संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हैं। कुछेक व्यंग्य नाटक भी चर्चित और मंचित हुए हैं। दूरदर्शन के लिए धारावाहिकों के अलावा फ़िल्मी संवाद भी लिखे ।
1989 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' से अलंकृत किया।
5 सितम्बर 1991 को उनका देहावसान हुआ।
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