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Bharatiya Jnanpith
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यस सर! -
नब्बे का दशक भारी बदलाव का शुरुआती दशक कहा-माना जा सकता है। विश्व के एक गाँव में बदल जाने की शुरुआत का दशक। भारतीय समाज को भी इस बदलाव की ब्यार ने गहरा प्रभावित किया। तमाम सामाजिक समीकरण, मान्यताएँ ध्वस्त हुई और जीवन जीने, यहाँ तक कि सोचने तक का बुनियादी तन्त्र इस बदलाव के चलते पूरी तरह बदल गया। ऐसे में साहित्य भला कैसे अछूता रह पाता। अन्ततः यह समाज का दर्पण ही तो है। इस कहानी संग्रह में प्रकाशित आठों कहानियाँ कहीं न कहीं समाज में आये इस बदलाव को रेखांकित करती हैं। यही साहित्य का कर्म भी है। मनुष्य की महत्वाकांक्षा का दानवी होना, बाज़ारवाद के चलते संस्कृति से दूर होते जा रहे समाज से शिव संस्कृति के लोप होने और विष्णु संस्कृति के बढ़ते वर्चस्व को इन कहानियों से महसूसा जा सकता है।
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Publication | Bharatiya Jnanpith |
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