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यस सर! - 
नब्बे का दशक भारी बदलाव का शुरुआती दशक कहा-माना जा सकता है। विश्व के एक गाँव में बदल जाने की शुरुआत का दशक। भारतीय समाज को भी इस बदलाव की ब्यार ने गहरा प्रभावित किया। तमाम सामाजिक समीकरण, मान्यताएँ ध्वस्त हुई और जीवन जीने, यहाँ तक कि सोचने तक का बुनियादी तन्त्र इस बदलाव के चलते पूरी तरह बदल गया। ऐसे में साहित्य भला कैसे अछूता रह पाता। अन्ततः यह समाज का दर्पण ही तो है। इस कहानी संग्रह में प्रकाशित आठों कहानियाँ कहीं न कहीं समाज में आये इस बदलाव को रेखांकित करती हैं। यही साहित्य का कर्म भी है। मनुष्य की महत्वाकांक्षा का दानवी होना, बाज़ारवाद के चलते संस्कृति से दूर होते जा रहे समाज से शिव संस्कृति के लोप होने और विष्णु संस्कृति के बढ़ते वर्चस्व को इन कहानियों से महसूसा जा सकता है।

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अपूर्वा जोशी (Apoorva Joshi )

"अपूर्व जोशी - अपूर्व जोशी का जन्म 24 नवम्बर, 1969 को उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखण्ड) के अल्मोड़ा जनपद के शहर रानीखेत में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा केन्द्रीय विद्यालय रानीखेत से लखनऊ क्रिशियन कॉलेज, लखनऊ से विज्ञान में स्नातक की डिग्री। तत्पश्चात पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन सिस्टम मैनेजमेंट में प्रवेश, लेकिन अन्तिम वर्ष में छोड़ दिया। वर्ष 2001 से हिन्दी साप्ताहिक 'दि संडे पोस्ट' का सम्पादन 2005 में। दक्षिण अफ्रीकी गणराज्य 'कांगो' के मानद दूतावास का कार्यभार सम्भाला। 2008 में हिन्दी साहित्य की पत्रिका 'पाखी' की शुरुआत। प्रथम दो वर्ष तक पत्रिका का सम्पादन। फिर 2019 से 'पाखी' के सम्पादन में जुटे। 'विकल्पहीनता का दंश' (2018), 'यहाँ पानी ठहर गया हैं' (2020 ), 'लोकतन्त्र राजनीति और मीडिया' (2020), 'उत्तराखण्ड : हाल बेहाल' (2021), 'राष्ट्र धर्म और राजनीति' (2021) पुस्तकें प्रकाशित। 'पाखी' के प्रकाशन के साथ ही हिन्दी कहानी लेखन में सक्रिय 'हंस', 'वागर्थ', 'पुनर्नवा', 'निकट', 'पाखी' आदि में कहानी प्रकाशन। 'दैनिक जनसत्ता' और दैनिक 'नवभारत टाइम्स' में लेखों का प्रकाशन। इन्दिरा गाँधी नेशनल सेन्टर फार आर्ट एंड कल्चर से सम्बन्ध भारतीय ओलम्पिक संघ के अन्तर्गत उत्तराखण्ड टाइक्वान्डु एसोसिएशन के वर्तमान में अध्यक्ष। "

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