योगसार-प्राभृत (श्रीमद्-अमितगति-विरचित)
योगसार-प्राभृत
यह ग्रन्थ 9 अधिकारों में विभक्त है जिनके नाम हैं-1. जीवाधिकार, 2. अजीवाधिकार, 3. आस्रवाधिकार, 4. बन्धाधिकार, 5. संवराधिकार, 6. निर्जराधिकार, 7. मोक्षाधिकार और 8. चारित्राधिकार। नवमे अधिकार को 'नवाधिकार' तथा 'नवमाधिकार' नाम से ही ग्रन्थ-प्रतियों में उल्लेखित किया है, दूसरे अधिकारों की तरह उसका कोई खास नाम नहीं दिया; जबकि ग्रन्थ-सन्दर्भकी दृष्टि से उसका दिया जाना आवश्यक था। वह अधिकार सातों तत्त्वों तथा सम्यक् चारित्र-जैसे आठ अधिकारों के अनन्तर 'चूलिका' रूप में स्थित है-आठों अधिकारों के विषय को स्पर्श करता हुआ उनकी कुछ विशेषताओं का उल्लेख करता है और इसलिए उसे यहाँ 'चूलिकाअधिकार' नाम दिया गया है। जैसे किसी मन्दिर-भवन की चूलिका-चोटी उसके कलशादि के रूप में स्थित होती है उसी प्रकार 'योगसार-प्राभृत' नामक ग्रन्थ-भवन की चूलिका-चोटी के रूप में यह नवमा अधिकार स्थित है अतः इसे 'चूलिकाधिकार' कहना समुचित जान पड़ता है। ग्रन्थ के 'परिशिष्ट' अधिकार रूप में इसे ग्रहण किया जा सकता है।
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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