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Zihn Mein Kuch Sher The

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ज़िह्न में कुछ शेर थे - 
संदल ग़ज़ल को ग़ज़ल की तरह जीने में माहिर हैं। ग़म में ख़ुशियाँ तलाशते शेर, ज़िन्दगी जीने का साहस बिखेरते देखे जा सकते हैं। समाज में बिखरे तमाम विदुषों को चाक पर डाल कर एक अलग अन्दाज़ में, एक नये सूरत में बख़ूबी परोसने की कला देखने लायक है। संकेतों और प्रतीकों में छलकते इन्सानी दर्द को काग़ज़ पर हू-ब-हू उकेरने और सामाजिक कुरीतियों पर मुस्कराते हुए प्रहार करने की कला सीखने लायक है। आने वाला वक़्त इन्हें सच्ची शायरी के लिए जानेगा। —ललित कुमार सिंह
संदल की ग़ज़लों में अपनी धरोहर के प्रति अनुराग, वर्तमान के प्रति सजगता और भविष्य के प्रति विश्वास है। नये दृष्टिकोण, नये रंग और नये स्वभाव की ये ग़ज़लें पाठक को मुग्ध कर देती हैं। समकालीन ग़ज़ल के श्रृंगार में संदल के अशआर सुगन्ध की सामग्री है। बधाई हो ग़ज़ल!—विजय स्वर्णकार

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Zihn Mein Kuch Sher The
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Bharatiya Jnanpith
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Publication Bharatiya Jnanpith
अवधेश प्रताप सिंह 'संदल' (Avdhesh Pratap Singh 'Sandal')

"अवधेश प्रताप सिंह ठाकुर - जन्म: 8 नवम्बर, 1984। शिक्षा: बी.ए.एम.एस., एम.ए. (हिन्दी), नेट, जे.आर.एफ़. (हिन्दी)। कार्यक्षेत्र: वर्तमान में सहायक प्राध्यापक (हिन्दी)। शासकीय महाविद्यालय पथरिया ज़िला—दमोह (म.प्र.), पूर्व आयुष चिकित्सा अधिकारी (राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम)। रचनाएँ: ग़ज़ल एवं व्यंग्य विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित तथा आकाशवाणी से प्रसारित। "

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