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ज़िन्दगी मुसकरायी

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"ज़िन्दगी मुसकरायी - 'ज़िन्दगी मुसकरायी' भारतीय जीवन शैली के अप्रतिम साधक कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' के ऐसे निबन्धों का मोहक संग्रह है, जो कहने को निबन्ध हैं, लेकिन वे संस्मरण भी हैं, कहानी भी हैं, अनुभव भी हैं, विचार भी हैं, उपदेश भी हैं और इन सबसे बढ़कर एक सहृदय, सत्पुरुष, हितैषी और प्रेमी मित्र की रसभरी बातें हैं जो हृदय से निकलकर पाठक के हृदय में समा जाती हैं। दूसरे शब्दों में, ये मन की मुरझाती तुलसी को उदासी से प्रसन्नता के, अवसाद से आह्लाद के, हताशा से उद्यम के, अकर्मण्यता से कर्मण्यता के और असफलता से सफलता के लहलहाते उपवन में लाकर रोप देते हैं।... 'ज़िन्दगी मुसकरायी' का लेखक भी उन्हीं में है, जो अत्यन्त साधारण और दमघोंटू परिस्थितियों में जन्म लेते हैं और सफल, आनन्दपूर्ण और विशिष्ट जीवन की ओर नहीं बढ़ पाते, पर लेखक उन बुरी परिस्थितियों में निराश नहीं हुआ और उसने 'साधारण व्यक्ति के लिए उत्तम जीवन की खोज' की। वही खोज इन पृष्ठों में है। पाठक भी इन पृष्ठों में अपने लिए अच्छे और सफल जीवन की खोज कर सकते हैं..... "
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9789326351980
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Bharatiya Jnanpith
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कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर (Kanhaiya Lal Mishr Prabhakar )

"कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' - सहारनपुर ज़िले के देवबन्द क़स्बे में 29 मई, 1906 को जनमे प्रभाकर जी राष्ट्र-चिन्तक तो थे ही, हिन्दी के महान गद्य-लेखक और पत्रकार भी थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं—'ज़िन्दगी मुसकरायी', 'माटी हो गयी सोना', 'महके आँगन चहके द्वार', 'आकाश के तारे धरती के फूल', 'दीप जले शंख बजे', 'क्षण बोले कण मुसकाये', 'बाजे पायलिया के घुँघरू', 'ज़िन्दगी लहलहायी' और 'कारवाँ आगे बढ़े'। सभी कृतियाँ ज्ञानपीठ से प्रकाशित। "

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