Aadibhoomi
आदिभूमि -
संस्कृति को सिर्फ़ बाहर से नहीं देखा जा सकता और न ही यह दिखाने की चीज़ है। बाहर-बाहर से देखकर इसे पूरी तरह अभिव्यक्त कर पाना सम्भव भी नहीं है। दरअसल संस्कृति को अपने अन्दर अनुभव कर, उसमें रच-बस कर ही उसकी बहुरंगी छवियाँ उकेरी जा सकती हैं। प्रख्यात उड़िया कथाकार प्रतिभा राय ने अपने इस उपन्यास आदिभूमि में यही किया है।
आदिभूमि उड़ीसा के बोंडा आदिवासी जन-जीवन और उसके परिवेश की जीवन्त कथा है। इसमें आदिम मानव-समाज का प्रतिनिधित्व कर रही बोंडा जनजाति की धड़कन है। यह बोंडा के पारम्परिक जीवन-मूल्यों, आवेगों और विश्वासों के साथ ही आज के सांस्कृतिक और आर्थिक वैश्वीकरण के दौर में विकास के नाम पर आधुनिक समाज द्वारा हो रहे उसके दोहन-शोषण और उससे उपजी विकृतियों की गाथा है। इस उपन्यास में पाँच पीढ़ियों की कहानी है, जिसमें प्रागैतिहासिक बोंडा जीवन और समाज के सुख-दुख, जय-पराजय, उसके द्वन्द्व और संघर्ष आदि विविध पक्षों को लेकर पूरी एक शताब्दी में फैले कथानक का ताना-बाना बुना गया है। कहा जा सकता है कि यह हमारे समय का, मानव के शुद्ध रूप और उसकी सात्त्विक सम्भावना का एक विराटू फलक पर रचा गया महत्त्वपूर्ण औपन्यासिक दस्तावेज़ है।
प्रस्तुत है कथा-साहित्य के सुधी पाठकों के लिए प्रतिभा राय के बहुप्रशंसित उपन्यास आदिभूमि का नया संस्करण ।