Aag Ka Rahasya

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काव्य-लेखन की परम्परा प्राचीन है और प्राचीन समय से ही मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति के लिए काव्य-लेखन करता रहा है। हर दौर में कविता का रूप तो बदला ही, साथ ही उसे अपनी वैचारिक क्षमता के अनुसार भी प्रयोग में लाया गया। ऐसे अनेक महान कवि हुए हैं जिन्होंने अनेक महान काव्य-कृतियों की रचना की और अपनी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का प्रसार किया । इस श्रेणी में चर्चित कवि राजकुमार कुम्भज भी एक हैं जिन्होंने अनेक काव्य-कृतियों की रचना की। उनका नया काव्य-संग्रह 'आग का रहस्य' भी उनके पूर्व के काव्य-संग्रहों की भाँति अपने में क्रान्तिकारी विचारों से युक्त कविताओं को समेटे हुए है, यह कविताएँ अवश्य ही पाठकों को ऊर्जस्वित और रोमांचित करेंगी।

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सिर्फ़ जलती हैंपिघलती क्यों नहीं हैं ये मोमबत्तियाँ ?क्यों साइबेरिया पलता है उनके पेट में? और क्यों तनी मुट्ठियाँ खुल जाती हैं चतुर सौदागरों की पोटलियों जैसी ? मैंने देखा है, सुना है वह भ्रष्टाचार जहाँ हार जाता है हर एक विचार पूँजीवाद ! पूँजीवाद !! अटपटा ख़याल है कि किसको, कितना धिक्कार ? सब दर्ज़ी हैं, सब फर्ज़ हैं मिलते ही मौक़ा छप-छपाक गिरते हैं सब उठने के दिन को, दूर से ही करते हुए नमस्कार सबके सब कितने लाचार ?टपकाते लार, चाटते अचार ? आराम- दक्ष के बन्द-कक्ष में सोचते ब्रह्माण्ड सिर्फ़ जलती हैं पिघलती क्यों नहीं हैं ये मोमबत्तियाँ ? क्यों जलते नहीं हैं हाय?

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