Ab Garibi Hatao

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शोषक की कुटिलता और अमानवीयता को 'ठोस' रूप में मंच पर मूर्तिमान करने के लिए मैंने ढाई-तीन फुटे शैलीकृत पुतलों का उपयोग किया था, जिनके सूत्र काले लबादों में ढँकी छायाओं के हाथों में थे। जबकि शोषित जन हाड़-मांस के सामान्य जन थे जो इन बौनों के सामने अधिकतर समय अपने घुटनों, पीठ या पेट पर घिसटने के लिए अभिशप्त थे। केवल जीवन की ललक में, संघर्ष के अहसास से पूरित क्षणों में ही वे 'तिरछे होकर' खड़े हो जाते थे। पुतलों और अभिनेताओं के बीच का व्यापार मंच पर अद्भुत नाटकीय तनाव की सृष्टि करता था।नाटक में प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से अपार सम्भावनाएँ हैं-और कोई भी कल्पनाशील निर्देशक इसे कई रूपों में मंच पर प्रस्तुत कर सकता है।भानुभारती, निर्देशक

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