Bagair Unvaan Ke

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सआदत हसन मण्टो का यह नॉवेल पहली बार उनके एक रिसाले ‘कारवाँ' में क़िस्तवार प्रकाशित हुआ था। बाद में सन् 1954 ई. में लाहौर से किताबी सूरत में प्रकाशित हुआ। जिस समय यह नॉवेल किस्तवार प्रकाशित हो रहा था, तो मण्टो ने अपने अफ़सानानिगार दोस्त अहमद नदीम कासमी को एक ख़त में इसके प्रकाशित होने की इत्तिला देते हुए इसे अफ़साना कहा है। यानी मण्टो ने अपने समकालीन उर्दू कहानीकारों की तरह इरादतन कोई नॉवेल या नॉवलेट नहीं लिखा, क्योंकि उनका रचनात्मक स्वभाव कहानी लिखने का ही आदी था। मण्टो के इस नॉवेल में भी उनकी कहानियों की तरह ही इन्सानी ज़हन की नफ़्सियाती और जिंसी कैफ़ियात का बयान बड़े सलीके से हुआ है। मण्टो और उनके समकालीन कहानीकारों पर फ्राइड के विचारों का काफी असर था, इसलिए इस नॉवेल में भी इन असरात को देखा जा सकता है। मण्टो ने पं. जवाहरलाल नेहरू के नाम एक ख़त को इस नॉवेल की भूमिका बनाया है। अगरचे इस ख़त का नॉवेल के विषय से कोई सम्बन्ध नहीं है, फिर भी इससे उस समय के सियासी एवं समाजी हालात के बारे में मण्टो की राय के अलावा उस समय के कहानीकारों के कहानी लेखन के अन्दाज़ का भी पता चलता है। -महताब हैदर नक़वी

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