Ball Ginuva
उत्तराखण्ड के दूरदराज गाँव से सात समुद्र पार मध्य अमरीका के केन्सस विश्वविद्यालय और अस्पताल तक फैले गिनुवा का कथा-क्षेत्र बड़ा व्यापक है। कोमा से उभरी वृद्धा माँ और मात्र चौदह माह पहले मिली बेटी के बीच की कशमकश में कथा आरम्भ होती है और उसको जानने के उपक्रम में कथा का विस्तार संक्षेप में कथा यह है कि कोमा से लौटने पर वृद्धा माँ कुछ और ही भाषा में बोलती है और उस मनःस्थिति में वह न तो बेटी को और न अपने को पहचानती है बल्कि उसकी चेतना वर्षों पूर्व अपने बचपन में चली जाती है जहाँ उसे एक दिन खेलते हुए अटका हुआ रंगीन गिनुवा (बॉल) मिला था और कैसे एक गोरा-चिट्टा लड़का उससे वह गिनुवा छीनना चाहता था जिसे वह यह मान बैठी थी कि उसके स्वर्गस्थ पिता ने उसके लिए भिजवाया है और किसी भी कीमत पर देना नहीं चाहती। इसी के चलते वह गोरे लड़के को धक्का दे देती है जिस पर उसका दूरदराज का मामा (जिसकी वह आश्रिता थी) उसे जोरदार तमाचे जड़ देता है, तभी बच्चे की मेम माँ आ जाती है और अपने बच्चे से गिनुवा उसे अपनी बहन को देने को कहती है और इसी क्रम में वह भी उस गाँव से मध्य अमरीका पहुँच जाती है। अनेक अन्तःकथाओं और उपकथाओं से उपन्यास का कलेवर निर्मित हुआ है जिनमें दो भिन्न संस्कृतियों, समाजों के आचार-विचार और व्यवहार ही नहीं बल्कि दो व्यक्तियों की प्रेम कहानी भी है। यथार्थ और कल्पना का ऐसा सम्मिश्रण कि वह वास्तविक लगने लगे किस्सागो जोशी जी की विशेषता है। इस संक्षिप्त से कथानक में भी पात्रों के अन्तर्द्वन्द्व, संघर्ष, भावों के उतार-चढ़ाव, शंका और दुश्चिन्ता को बखूबी उतारा है। इसे पढ़ते हुए मन में यही कसक रह जाती है कि काश वे इसे पूरा कर पाते। अपनी अपूर्णता में भी समग्रता को समेटे यह ‘गिनुवा' सुधी पाठकों के समक्ष है। वे ही निर्णायक हैं। भवदीया भगवती जोशी