Bashir Badra Nai Ghazal Ka Ek Naam
बशीर बद्र शायर होने के साथ उर्दू ग़ज़ल के साहिबे किताब आलोचक भी हैं । अपनी किताब आज़ादी के बाद उर्दू ग़ज़ल में उन्होंने कमजोर शायरी की पहचान के साथ, तंदुरुस्त ग़ज़ल की भी कुछ निशानियाँ गिनायी हैं । कमज़ोर शेरों की मिसालों के लिए उन्हें तक़रीबन 700 वर्षों के इतिहास. की खाक छाननी पड़ी, लेकिन तंदुरुस्त शेरों की तलाश में उन्हें ज्यादा वक्त खर्च नहीं करना पड़ा, घर में अल्लाह का दिया हुआ सब कुछ था, जी खोल कर अपने शेरों का इस्तेमाल किया।
उन पर यह इल्ज़ाम लगाना तो ठीक नहीं है कि वह अपने समकालीनों से वाक़िफ़ नहीं हैं। लेकिन अपने मेयार से किसी क़िस्म' का समझौता करने के वह ख़ादार नहीं हैं, यही उनकी ईमानदारी है। उनका मेयार खुद उनकी ग़ज़ल है ।
वह उर्दू अदब के डॉक्टर भी हैं। मेरठ कॉलेज में अदब के उस्ताद भी रहे हैं, उन्होंने मीर व गालिब को क्लास में पढ़ाया है। हाली और इक़बाल के बदलते हुए अंदाज़ से लड़के-लड़कियों को परिचित कराया है।