Bhakti Anjuri
भक्ति अँजुरी -
आचार्य वादिराज की भक्ति की गंगा जब मुनि श्री क्षमासागर जी की भक्ति में समाहित होकर बहती है तो तृप्ति के असीम सागर का अहसास होता है। ऐसा शायद इसलिए भी हो सका क्योंकि स्वयं मुनि श्री अपने गुरु के प्रति गहरे समर्पित होकर उनकी भक्ति के रस में डूबे रहते थे।
एकीभाव स्तोत्र जैन भक्ति कोश की एक प्रतिनिधि रचना है। इसका भाषालालित्य, शब्द चयन, भाव एवं काव्य सौन्दर्य अनूठा है। गूढ़ एवं रहस्यपूर्ण अर्थों से सम्पन्न होने के कारण से जन सामान्य में यह उतनी लोकप्रिय नहीं हो पायी जितनी आचार्य मानतुंग की अमर निधि भक्तामर स्तोत्र। लेकिन क्लिष्टतम विषयों को सहजतम करने के अद्भुत कौशल के धारी मुनि क्षमासागर जी का जब एकीभाव स्तोत्र पर व्याख्यान पढ़ते हैं तो लगता है कि यह कितना सरल है। मुनिश्री का गूढार्थों के सहजीकरण का कौशल आश्चर्यकारी है। बहुत ही सरल से उदाहरणों के माध्यम से अत्यन्त गहरी बात को वे हृदय में उतार देते हैं। मुनिश्री का स्वयं का जीवन भक्ति एवं समर्पण का उदाहरण रहा है। उनके मुखारबिन्द से एकीभाव सुनना, वक्ता के तद्गुणधारी होने से, एक भावनात्मक अनुभव है।