Bhasha Chintan Hindi

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भाषा के बारे में लोग क्या सोचते हैं, यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। किसी भी उदीयमान देश के लिए भाषा की उपयोगिता को समझना देश की होने वाली प्रगति का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। भाषा के महत्व को समझने का आधार भावुकता नहीं, अपितु रोज की ज़िन्दगी में उसकी उपयोगिता है। भाषा के माध्यम से ही हम अपने विचारों, भावों, अपने शोध के निष्कर्षों और अपनी महत्वाकांक्षाओं को अभिव्यक्त करते हैं। भाषा के विषय में भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में ऐतिहासिक, सामाजिक व राजनीतिक दृष्टि से और भाषा के स्वरूप की दृष्टि से भाषा के अनेक पहलू हैं जिन पर विद्वान अपने शोध के आधार पर समय-समय पर लिखते रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक उन्हीं विचारों का निचोड़ है। उन्हीं विचारों को लिखते हुए लेखक ने अपने शोध और अपने चिन्तन के आधार पर भी हिन्दी भाषा के अनेक पहलुओं की चर्चा इस पुस्तक में की है। हिन्दी भाषा की कुछ अपनी भाषागत विशेषताएँ हैं जिनको इस पुस्तक में उजागर किया गया है। उदाहरण के लिए हिन्दी भाषा में औपचारिक शब्दावली और अनौपचारिक शब्दावली में जो अन्तर दिखाई पड़ता है। उतना अन्तर अंग्रेज़ी में नहीं दिखता। हिन्दी व अंग्रेज़ी का सम्मिश्रण, जो आज हिन्दी भाषियों की बोलचाल में दिखाई पड़ता है, उसका प्रयोगकर्ताओं की दोनों भाषाओं में प्रवीणता पर क्या असर पड़ता है और एक सशक्त समाज और एक सशक्त भाषा का साहचर्य कितना आवश्यक है-आदि विषयों पर नपे तुले शब्दों में यहाँ चर्चा है। आशा है यह पुस्तक भाषा सम्बन्धी विषयों पर पाठकों के विचारों में स्पष्टता ला सकने में कुछ योगदान कर सकेगी और समाज में भाषा सम्बन्धी चर्चा को वैज्ञानिक ढंग से आगे बढ़ा सकेगी।

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