Bhoomika
अमृता भारती, मेरे विचार में, शायद आधुनिक हिन्दी कविता के पटल पर सबसे अकेला हस्ताक्षर हैं। अकेला और अनूठा। बहत वर्ष पहले जब उनकी कविताओं को पढ़ने का संयोग मिला था, तो गहरी विचलन की अनुभूति हुई थी। बिम्बों का इतना विचित्र संयोजन पहले किसी हिन्दी कविता में नहीं देखा था। यहाँ ऐन्द्रिक मांसलता और अस्तित्वगत विकलता का अद्भुत मिश्रण था। आध्यात्मिक सुर्रियलिज़्म ? यदि ऐसी कोई चीज़ है, तो ये दो शब्द अमृता भारती के काव्य-संसार को सबसे सशक्त रूप से अभिव्यक्त करते हैं। कविता में आत्मबोध की प्राप्ति शायद एक 'असाधारण जीवट प्रयास लिए होती है; अमृता ने उस 'असाधारण' को जिस कुशलता से अपनी नयी कविताओं में साधा है, वहाँ एक साधक और कवि के बीच का अन्तर मिट जाता है। आज की हिन्दी कविता में यह एक ऐसा अप्रत्याशित मोड़ है, जिसे विलक्षण ही कहा जा सकता है। - निर्मल वर्मा