Chhabbees Kahaniyan
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"स्वयं प्रकाश हिन्दी कहानी के विशाल संसार में अलहदा कथाकार हैं जो सोद्देश्यता के साथ पाठक के मन को छूने वाली कहानियाँ लिख सकते थे। लगभग पचास साल का उनका कहानी सफ़र स्वतन्त्र भारत के सबसे उथल-पुथल वाले दौर का भी सफ़र है जिसमें आपातकाल, मध्यवर्ग का उभार, मीडिया विस्फोट, एकल परिवार, भूमण्डलीकरण से बदलते रिश्ते-नाते सब कुछ आ जाते हैं। राजस्थान के विषम भौगोलिक इलाकों से ओडिशा के जंगलों-आदिवासियों तक फैले स्वयं प्रकाश के कथा संसार में भारतीय जन मानस के सपने और आशाएँ पल्लवित हुए हैं। वे भारत की जनता की सबसे बड़ी शक्ति को जानते हैं और उस शक्ति अर्थात आशावाद को कभी नहीं छोड़ते। अकारण नहीं कि हिन्दी के वरेण्य आलोचक नामवर सिंह ने अपनी पुस्तक 'कहना न होगा' में अपना प्रिय कथाकार स्वयं प्रकाश को बताया था। साधारण दिखाई देने वाली स्वयं प्रकाश की कहानियों की कला का रहस्य भी यही है कि वहाँ जीवन की सच्चाइयाँ इस अकृत्रिम ढंग से आती हैं कि कला का अहसास ही नहीं होता। उनकी प्रारम्भिक कहानियों 'नीलकान्त का सफर और ‘उस तरफ’ से उनके आखिरी दौर की कहानियों 'प्रतीक्षा' और 'बिछुड़ने से पहले’ तक सादगी की इस अनूठी कला का जादू बरकरार रहता है। अपनी कहानियों में वे हमेशा नये-नये इलाकों में जाते हैं जहाँ भारत की विशाल जनता के भिन्न-भिन्न किन्तु सच्चे और जीवन्त चित्र पाठकों के मन में इस महामानव समुद्र के प्रति हार्दिक लगाव उत्पन्न करते जाते हैं। अपने देश और समाज का ऐसा हृदयस्पर्शी चित्र स्वयं प्रकाश को बड़ा कथाकार बनाता है। 'छब्बीस कहानियाँ' इस समृद्ध कथा संसार का सबसे प्रामाणिक और प्रतिनिधि दस्तावेज है। -पल्लव
स्वयं प्रकाश प्रेमचन्द की परम्परा के लेखक माने जाते हैं। वे अपनी कथाओं में पात्रों को निर्मित नहीं करते बल्कि अपनी दूरदर्शिता और बौद्धिक अभ्यास द्वारा आसपास के समाज को चिन्हित और दर्ज करते हैं। भारतीय कथा परम्परा में कथा एक उद्देश्य के साथ लिखी जाती रही है। स्वयं प्रकाश ने उसी परम्परा का निर्वाह अपनी कथाओं में किया है। कथाओं के लिए कई महत्त्वपूर्ण तत्त्व साझेदारी के साथ लेखक के समक्ष आन्तरिक रूप से प्रस्तुत होते हैं। उनमें कल्पना बोध एक ऐसा तत्त्व है जिसकी हल्की-सी भी अवहेलना स्वयं प्रकाश ने कभी अपनी कथाओं में नहीं की। वे कल्पना के माध्यम से कहानी में रोचकता, स्तब्धता और संवाद में रस की उत्पत्ति करते हैं। सही मायनों में एक सपाट कथा में 'अकस्मात' नये भावों का उत्पन्न हो जाना ही किस्सागोई कहलाता है। यही कारण है कि स्वयं प्रकाश की कहानियाँ अपने पाठकों से आत्मीय संवाद करती हैं। प्रस्तुत संग्रह में उनकी 26 कहानियाँ हैं जो समाज, मनुष्यों और उनकी स्थितियों को बारीकी से देखने का प्रयास करती हैं। वे अपनी कथाओं में सूक्ष्म ब्यौरों को अतिरिक्त सावधानी से देखते हैं और अपने जीवन के अनुभवों के माध्यम से उन्हें कथाओं के रूप में अपने पाठकों को सौंपते हैं।
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