Deewaron Ke Bahar

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9788170558170
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आज गैलरी से उसे जिस तरह दुनिया नज़र आती है, उसने उसमें एक साथ कई आकांक्षाएँ जगा दी हैं। वह चाहता है, बचपन की तरह बहुत-से पैसे चिड़ीमार को देकर बहुत-सी चिड़ियाँ उसके पिंजरे से आज़ाद करा दे। वह चाहता है, शाम होते ही किसी क़ब्रिस्तान में जाये और किसी एक क़ब्र पर ढेर सारी अगरबत्तियाँ जलाये और एक साथ कई क़ब्रों पर फ़ातिहा पढ़कर चला आये । वह चाहता है, समन्दर के किनारे किसी सुनसान कोने में बैठकर आती-जाती हुई लहरों पर कई भूले-बिसरे चेहरे बनाये। वह चाहता है, अतीत की किसी ख़ुशी को याद करके इतना हँसे कि आँखों में आँसू चमक उठें। उसे याद आता है, एक लम्बे अरसे से उसे अच्छी तरह रोने की फुर्सत ही नसीब नहीं हुई। जमील फ़ातिमा के गुज़र जाने का जब उसे तार मिलता है, वह दोस्तों में घिरा होता है। मुर्तज्ञा हसन का ग़म रोज़ी-रोटी, दाना-पानी की भाग-दौड़ में कहीं छूट जाता है। और भी कई छोटे-बड़े दुख इसी तरह आते हैं और चले जाते हैं। समय के इस पूरे अन्तराल में उसका सारा रोना आँखों से दूर, उसके अन्दर कहीं जमा होता रहता है और वह लगातार हँसता रहता है।

शहर में सबको कहाँ मिलती है राती जगह 
अपनी इज्जत भी यहाँ हँसने-हँसाने से रही

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9788170558170
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