Aadhunik Kahani Slovakiya

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हमारे देश में एक स्लोवाक पहचान की भावना विकसित होने की प्रक्रिया के दौरान हम एक ऐसे दौर से गुजरे थे, जब एक अखिल स्लावी पहचान एक बृहत् स्लावी-जगत का आलम्ब थी। इसी तरह की एक मसीही मानसिकता पॉलिश तथा रूसी संस्कृति और साहित्य में पहले ही प्रचलित थी, जिसमें स्लोवाकिया का अखिल स्लाववाद राष्ट्रीय घटकों को अधिक महत्त्व नहीं देता था और एक स्लावी संस्कृति के संश्लेषण में उसकी ज्यादा दिलचस्पी थी। गत शताब्दी का मोड़ स्लोवाक साहित्य के इतिहास के युग के लिए भी एक नया मोड़ ले कर आया, जब जीवन पर एक नयी सोच और एक नयी काव्यात्मक भाषा उभर कर सामने आयी प्रतीकात्मकता कविता में एक मूल तत्त्व बन कर उभरी। आधुनिक युग की स्लोवाक कविता ईवान क्रासको, लुडमिला ग्रोएब्लेवा तथा यांको येनेस्की के यथार्थवादी गद्य से एकदम भिन्न है। दो विश्वयुद्धों के मध्य सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण लेखकों में लादिस्लाव नोवोमेस्की का नाम उल्लेखनीय है, जिनकी कविता पर चेक काव्यशास्त्र का प्रभाव था। नब्बे के दशक में नाटक ने तीस के दशक के उस प्रगतिवादी साहित्य से पुनः अपनी कड़ी जोड़ी, जो शीतऋतु की निद्रा में कहीं खो गयी थी।

पचास के दशक में साहित्य और राजनीति में एक आवेशग्रस्त सम्बन्ध रहा था, और अधिनायकवाद में ढिलाई आने पर कुछ ऐसा लेखन सामने आया, जिसमें तत्कालीन व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाया गया था (दोमीनीक तातारका, डेमोन सूलासू)। इस अवधि के दौरान स्लोवाक राष्ट्रवादी आन्दोलन इस क्रान्ति का निश्चयवाचक बिन्दु बन गया था।

साठ का दशक स्लोवाक साहित्य के इतिहास में सबसे अधिक उर्वर और कलात्मकता के स्तर पर सबसे ज्यादा बेशकीमती समझा जाता है, हालाँकि कुछ लेखक अपनी तब लिखी रचनाओं को 1989 में जा कर प्रकाशित करवा सके थे। साठ का दशक पचास के दशक के योजनाबद्ध साहित्य से विदा लेने का समय था, जो समाजवादी यथार्थवाद का क्लासिकल दौर था। साठ के दशक में अनेकों लेखक उभरे, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण रुडोल्फ यासिक हैं, जिनकी पुस्तक 'होली एलिजाबेथ प्लेस' 50 के दशक के अन्तिम वर्षों में प्रकाशित हुई थी, और व्लादिमीर मीनाक, जिनकी त्रयी 'जेनेरेशन' महत्त्वपूर्ण है। उनके बाद पावेल हुज, विन्सेंट शिकुला, पेत्र यारोश, लादिस्लाव वल्लेक और यां योनास आये। यारोस्लाव ब्लास्कोवा, पावेल हुज, अन्तोन हिकिश, ईवान काइलेचिक, पेत्र कारवास, मिकुलाश कोवाच, डोमीनिक तातारका और पावेल विल्लिकोव्सकी ने अपना साहित्य 70 के दशक में प्रकाशित नहीं किया; अल्फोंस बेदूनार, ईवान लाऊचिक, स्तेफान मोरावच्क, लादिस्लाव तास्की, ईवान स्त्राका भी अंशतः इस श्रेणी में आते हैं- अतः इस दशक की विशेषता है दृश्य एवं अदृश्य लेखक । फिर भी सामान्यीकरण की प्रक्रिया बोहेमिया तथा मोराविआ जितनी कड़ी नहीं थी, जिसके फलस्वरूप दूशान मिताना या रुडोल्फ स्लोबोदा जैसे गद्यकार और मुकुलाश कोवाच या लूबोमीर फेल्दाक जैसे कवि अपनी कुछ रचनाएँ प्रकाशित कर सके थे। सत्तर के दशक के सबसे अधिक लोकप्रिय तथा उर्वर लेखक थे विन्सेंट शिकुला, ईवान हाबाय, पेत्र यारोश, रुडोल्फ स्लोबोदा, दूशान मिताना, दुशान दुशेक, युलिउस बालको और मिलान रूफुस ।

यहाँ जिन लेखकों का उल्लेख किया गया है, वे सब इस संग्रह में शामिल नहीं हैं, क्योंकि संपादक डॉ. अमृत मेहता ने मुझे बताया है कि वे रचनाओं का चयन करते समय हिन्दी पाठकों की पसन्द को तरजीह देते हैं। मैं इस विशिष्ट संग्रह को विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक, अर्थात हिन्दी, में उपलब्ध करवाने के प्रयासों के लिए अनुवादक डॉ. शारदा यादव, वाणी प्रकाशन के श्री अरुण माहेश्वरी तथा संपादक डॉ. अमृत मेहता को बधाई देता हूँ। हमारे दो देशों, स्लोवाकिया तथा भारत के मध्य सांस्कृतिक तथा साहित्यिक सम्बन्ध सुदृढ़ बनाने की दिशा में यह एक सराहनीय योगदान है। भारत में स्लोवाकी दूतावास आशा करता है कि स्लोवाक साहित्य को भारत में लोकप्रिय बनाने के क्षेत्र में भविष्य में भी हमारा सहयोग बना रहेगा।

- मारियन तोमासिक भारत में स्लोवाकी राजदूत जुलाई 2011

ISBN
9789350008348
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