Aalochak Ka Aatmavlokan
आलोचक का आत्मावलोकन वरिष्ठ आलोचक गोपेश्वर सिंह की नवीनतम आलोचना-पुस्तक है। आलोचना में आत्मावलोकन की ज़रूरत पर बल देने वाली इस पुस्तक के ज़रिये गोपेश्वर सिंह विचारधारा और आत्मावलोकन के द्वन्द् की माँग करते हैं। वे साहित्य को वैचारिक निबन्ध की तरह पढ़े जाने को जायज़ नहीं मानते। वे मानते हैं कि रचना में विचार-तत्त्व के साथ रचनाकार का आत्मानुभव भी जुड़ा होता है। इसलिए एक ही समय में एक ही विचारधारा के रचनाकारों में भेद होता है। इसी तरह का भेद आलोचना-लेखन में भी होता है। गोपेश्वर सिंह का कहना है : "इधर के वर्षों में साहित्य में आत्मावलोकन की प्रवृत्ति घटी है। जब से अस्मितावादी राजनीति का वर्चस्व बढ़ा है, रचना-आलोचना में आत्मावलोकन का भाव ज़रूरी नहीं रह गया है। बाइनरी में रचना-आलोचना को देखने का चलन ज़ोरों पर है। अपने विरोधी पर प्रहार और उसकी आलोचना का भाव जितना उग्र है, उतनी ही मन्द है आत्मावलोकन की प्रक्रिया। कुल मिलाकर साहित्यालोचन राजनीतिक दलों के आरोप-प्रत्यारोप का सहोदर होता गया है।" इस कारण साहित्य को पढ़ने का इकहरा प्रतिमान बनता जा रहा है। यह कहने के साथ गोपेश्वर सिंह राजनीति की आलोचना और साहित्य की आलोचना में अन्तर किये जाने की माँग करते हैं। हमारे समय के ज़रूरी सवाल को उठाती गोपेश्वर सिंह की यह नयी आलोचना-पुस्तक साहित्य पढ़ने की आदत बदलने पर ज़ोर देती है और आलोचना को प्रासंगिक बनाये जाने की माँग करती है।
Publication | Vani Prakashan |
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