Abhi Jo Tumane Kaha
अभी जो तुमने कहा -
नरेश चन्द्रकर बुनियादी सरोकारों के कवि हैं। रोज़मर्रा की ज़िन्दगी और बेतरतीब भागती दुनिया, जिसे पास से छूने की फ़ुरसत नहीं है। पर नरेश चन्द्रकर जिसे छूते हैं, उसे ज़रा ठहरकर देखते हैं और वहाँ जो लम्हा, वहाँ एक छोटा-सा क्षण उनके क़ाबू में आता है, उसे कविता का रूप देते हैं। उनकी कविता 'कांटेक्ट लेंस' को ही देखिये। यहाँ से सयानी होती बिटिया को देख रहे हैं कि वह ज़िन्दगी के यथार्थ को असल आँखों से देख रही है— चश्मा उतर चुका है और वह ज़िन्दगी के साथ सीधे रू-ब-रू है।
नरेश ने छोटी-छोटी चीज़ों पर कविताएँ लिखी हैं और वे चीज़ें अचानक महत्त्वपूर्ण हो उठती हैं। दरअसल उनकी संवेदना का उन चीज़ों पर चस्पाँ हो जाने से जैसा लगता है कि हम ज़िन्दगी जी रहे हैं। यह अहसास नरेश चन्द्रकर की कविताओं में बार-बार आता है। 'बिजली का बिल', 'नाई की दुकान', 'प्रूफ़ रीडिंग', 'बेचैनी', 'वृद्धजन' कुछ इसी तरह की कविताएँ हैं।
नरेश चन्द्रकर की कविताओं में जो सबसे महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय बात है, वह यह है कि वे भाषा के साथ खेल नहीं करते। वहाँ कोई मौलिक अभ्यास करते हुए भी नहीं दिखाई देते— लेकिन कविता अलग दिखती है— अपने शिल्प में भी और भाषा के स्तर पर भी। नरेश की कुछ कविताएँ अपने अग्रज कवियों पर हैं, जो परम्परागत जीवन मूल्यों के साथ उनकी अभिव्यक्ति जीवन-यथार्थ को व्यक्त करती है। जैसे कि शिवकुमार मिश्र, मुक्तिबोध और मक़बूल फ़िदा हुसैन की पेंटिंग पर उनकी कविताएँ।
नरेश की कविताओं को पढ़कर लगता है, उनकी सोच नया विस्तार पाने को आकुल है और उन्हें एक बड़े कैनवास में तब्दील करने की सम्भावनाओं की तलाश है।