Adhoore Manushya
अधूरे मनुष्य -
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित तमिल के मूर्धन्य कथाकार एवं अपनी पीढ़ी के अप्रतिम गद्यकार डी. जयकान्तन का ज्ञानपीठ से प्रकाशित पहला कहानी-संग्रह है—'अधूरे मनुष्य'। डी. जयकान्तन तमिल साहित्य के अधुनातन सव्यसाची कहे जाते हैं। 'शिरुकदै मन्नन' (कहानी सम्राट) की उपाधि से अलंकृत जयकान्तन को धारा के विरुद्ध चलनेवाले लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त है। सतत संघर्ष के बावजूद उनके लेखन की धार कभी कुन्द नहीं हुई बल्कि समय के साथ और प्रखर होती गयी है।
डी. जयकान्तन के लेखन का मुख्य स्वर समाज के तिरस्कृत, अपमानित और उपेक्षित लोगों के प्रति न केवल सहानुभूति दर्शाना है, बल्कि समस्याओं के तह में जाकर उनका समाधान ढूढ़ने के लिए उनसे जूझना भी है। दूसरे शब्दों में, उनकी ये कहानियाँ निराश्रितों के जीवन में आशा का संचार तो करती ही हैं, अमानवीय जीवन जी रहे लोगों में मानवीयता का रस घोलने की भी भरसक कोशिश करती हैं।
विषय-वैशिष्ट्य व शिल्प की विलक्षणता जयकान्तन के साहित्य को असाधारण बनाती है। साथ ही, हिन्दी के अपने स्वाभाविक मुहावरे में किया गया इन कहानियों का अनुवाद हिन्दी पाठक को मूल जैसा आस्वाद देता है।
डी. जयकान्तन का एक अन्य कहानी-संग्रह 'अपना अपना अन्तरंग' भी भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित है।
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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