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अग्निपर्व - 
निजी स्वार्थ व अद्भुत त्याग के बीच टूटते-जुड़ते रिश्तों की अभूतपूर्व गाथा है 'अग्निपर्व'। लेखिका ने जीवन के कई उतार-चढ़ाव के माध्यम से उपन्यास को रचा है। रक्त-मांस के सम्बन्धों में गुथे हुए विघटनवादी विषैले प्रभावों से दूर मनोमय जगत के दिव्य बन्धन को अपने लिए शाश्वत प्राप्य मानकर कोई यात्रा जब आगे बढ़ती है तब पीछे के कितने ही पड़ाव साथ नहीं दे पाते। यह अनुभव ही इस अग्निपर्व की सबसे बड़ी रसद है और यह प्रतीति ही इसकी एकमात्र प्रतिबद्धता।

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Agni-Parv
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Bharatiya Jnanpith
Author: Rta Shukl
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Publication Bharatiya Jnanpith
ऋता शुक्ल (Rta Shukl )

"ऋता शुक्ल - जन्म: 14 नवम्बर, 1949 को डिहरी ऑन सोन में। शिक्षा: स्नातक प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान एवं स्वर्ण पदक प्राप्त, पीएच.डी.। रचना-संसार: ‘अरुंधती’, ‘अग्निपर्व’, ‘समाधान’, ‘बाँधो न नाव इस ठाँव’, ‘कनिष्ठा उँगली का पाप’, ‘कितने जनम वैदेही’, ‘कब आओगे महामना’, ‘कथा लोकनाथ की’ (उपन्यास); तीन उपन्यासकाएँ; ‘दंश’, ‘शेषगाथा’, ‘कासों कहों मैं दरदिया’, ‘मानुस तन’, ‘श्रेष्ठ आंचलिक कहानियाँ’, ‘कायान्तरण’, ‘मृत्युगन्ध, जीवनगन्ध’, ‘भूमिकमल’ तथा ‘तर्पण’ (कहानी-संग्रह)। सम्मान-पुरस्कार: ‘क्रौंचवध तथा अन्य कहानियाँ’ को भारतीय ज्ञानपीठ युवा कथा सम्मान, ‘लोकभूषण सम्मान’, ‘थाईलैंड पत्रकार दीर्घा सम्मान’, ‘राधाकृष्ण सम्मान’, ‘नई धारा रचना सम्मान’, ‘प्रसार भारती हिन्दी सेवा सम्मान’, ‘हिन्दुस्तानी प्रचार सभा सम्मान’, ‘हिन्दी सेवा सम्मान’ एवं अन्य सम्मान। कला संस्कृति मन्त्रालय, भारत सरकार की सदस्य। केन्द्रीय राजभाषा समिति की सदस्य, साहित्य अकादेमी की सदस्य। "

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