Aitihasik Natak
ऐतिहासिक नाटक - दया प्रकाश सिन्हा का वृत्त नाटक "इतिहास" सही अर्थों में भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष का इतिहास है। वह 1857 से 1947 के बीच के ऐतिहासिक तथ्यों को पूर्ण- सत्यता के उद्भासित करता है । सत्यनिष्ठा इतिहास लेखन की पहली और अंतिम कसौटी होनी चाहिए। किन्तु दुर्भाग्य से पिठले डेढ़ सौ वर्षों में औपनिवेशिक एवं मार्क्सवादी इतिहासकारों ने ऐतिहासिक सत्य की अपेक्षा, इतिहास के माध्यम से अपनी-अपनी विचारधारा को प्रतिष्ठित करने पर अधिक महत्व दिया है, और इसके लिए उन्होंने सत्य को अपने निहित उद्देश्य से तोड़-मरोड़ करके प्रस्तुत किया है।
सौभाग्य से श्री सिन्हा इस दुराग्रह से ग्रसित नहीं हैं। उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों को, जो जैसे हैं वैसे ही, बिना लाग-लपेट के बिना किसी भूमिका या परिप्रेक्ष्य के, दर्शकों के सम्मुख बड़े साहस के साथ सजीव कर दिया है। उन्होंने यह दर्शकों पर छोड़ दिया है कि वे इतिहास को अपने-अपने दृष्टिकोण से देखें, समझें, परखें। वह इतिहासकार को इतिहास और पाठकों के बीच का “बिचौलिया” नहीं समझते हैं।
सौ वर्षों के अन्तराल में अलग-अलग समय पर जन्में, अलग-अलग व्यक्तियों और घटती घटनाओं के बीच एकत्व के सूत्र को पहचानने की श्री सिन्हा में दृष्टि है, जिससे कार्य, समय और चरित्र की विषमताओं के बावजूद नाटक का एक सुगठित, सुगुम्फित और ध्येय-केन्द्रित रचनात्मक स्वरूप उभर कर आया है। नाटक में स्वतंत्रता संघर्ष की दोनों मुख्य धाराओं-क्रांतिधरा और सुधारधारा, के साथ समान न्याय किया गया है। यह सम्भव है कि इतिहास का सच किसी को कडुआ भी लगे। सच कडुआ होता है। जो समाज कडुए सच को स्वीकार कर सकते हैं, वे ही विषपायी शिव के समान अमर हो सकते हैं।
जिस राष्ट्र के नेता इतिहास से सबक नहीं लेते, वह राष्ट्र ऐतिहासिक गलतियां करता है। यह नाटक सामान्यजन में ऐतिहासिक चेतना के साथ-साथ राष्ट्रबोध भी जागृत करेगा । इस परिप्रेक्ष्य में यह वृत्त - नाटक विशेष रूप से स्वागतयोग्य है ।
- (कु. सी. सुदर्शन) सह सरकार्यवाह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ