Alakh Azadi Ki
अलख आज़ादी की -
सोने की चिड़िया है भारत,
क़िस्सा ये मशहूर है।
सारी दुनिया के पर
जैसे ये सिन्दूर था
प्राचीन काल से ही भारत अपने ज्ञान अध्यात्म धन-वैभव दिया, कला, कौशल में अद्वितीय रहा। सैकड़ों- हज़ारों वर्षों तक न केवल यूरोप बल्कि संसार की सभी मंडियों और बाज़ारों में भारत का ही माल आकर्षण का केन्द्र हुआ करता था, यह सम्पन्नता ही विदेशी हमलावरों की यहाँ बार बार हमला करने के लिए प्रेरित करती रही। अधिकतर हमलावर या तो लूट-पाट करके वापस लौट गये या यहीं की संस्कृति में रच-बस गये किन्तु योरोपियस का चरित्र कुछ दूसरे ही किस्म का था। वे यहाँ व्यापारी बनकर आये और फिर राज सत्ता हथियाने के षड़यन्त्रों में लग गये....पहले व्यापार की अनुमति, फिर कोठी..कोठी से किला फ़ौजें और कबजा, डच, पूर्तगाली, फ्रांसीसी सभी का उद्देश्य यही था लेकिन अंग्रेज़ सबके उस्ताद निकले।
सोलहवीं सदी की शुरुआत के साथ हिन्दुस्तान के साथ तिजारत बढ़ जाने के कारण पूर्तगाल की राजधानी लीबस्न का महत्व और उसकी शान योरोप में दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी। इंगलिस्तान के रहनेवालों को इससे ईर्ष्या होना स्वाभाविक था ।इंगलिस्तान में भी उस समय ब्रिस्टल का बन्दरगाह तिजारत का बड़ा केन्द्र था। यह अलग बात है कि ब्रिस्टल के नाविक अनेक पुस्तों से बड़े मशहूर समुद्री डाकू गिने जाते थे। उन दिनों योरोपियन कौम के लोग एक-दूसरे के माल से लदे जहाज़ों को लूट लेना जायज़ व्यापार समझते थे। इसी लूटपाट के ज़रिये अंग्रेज़ों को भारत के उस समय के जल मार्ग का पता चला था।
सुशील कुमार सिंह का नवीनतम नाटक 'अलख आज़ादी की' मात्र एक रंगमंचीय नाटक ही नहीं है बल्कि यह हिन्दुस्तान के विगत चार सौ सालों का बेबाक लेखा-जोखा भी है।
अलख आज़ादी की : रंगमंच के माध्यम से इतिहास सन् 1608 में पहला अंग्रेज़ी जहाज़, हिन्दुस्तान पहुँचा। इस जहाज़ का नाम 'हेक्टर' था। 'हेक्टर' प्राचीन यूनान के एक योद्धा का नाम था, जिसका अंग्रेज़ी में अर्थ है 'अकड़बाज' या 'झगड़ालू' ।
....जहाज़ का कप्तान हाकिन्स पहला अंग्रेज़ था जिसने समुद्र के रास्ते आकर भारत की भूमि पर क़दम रखा था। ...जहाज़ सूरत के बन्दरगाह में आकर लगा उस समय भारतीय व्यापार का एक प्रमुख केन्द्र था।
यही वह समय था जब भारत में मुग़ल सम्राट जहाँगीर का शासन था; कप्तान हाकिन्स ने आगरा में मुगल सम्राट से भेंट की।
जहाँगीर ने अंग्रेज़ों को न केवल व्यापार करने, कोठियाँ बनाने और मुग़ल दरबार में 'एलची' रखने की इजाज़त दी बल्कि यह भी इजाज़त दी कि वह अपनी बस्तियों में अपने क़ानून के मुताबिक अपने मुलाज़िमों को सज़ा भी दे सकते हैं।
...इस छोटी-सी घटना और बाद में सन् 1857 की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ इतिहास लेखक 'टाटेन्स' अपनी पुस्तक 'इम्पायर इन एशिया में लिखता है "बादशाह न्यायशील और बुद्धिमान था। उसने उनकी आवश्यकताओं को समझते हुए जो उन्होंने माँगा उसने मंजूर कर लिया। उसे यह स्वप्न में भी नज़र नहीं आ सकता था कि एक दिन अंग्रेज़ इस छोटी सी जड़ से बढ़ते-बढ़ते बादशाह की प्रजा और उसके उत्तराधिकारियों तक को दण्ड देने का दावा करने लगेंगे...और यदि उनका विरोध किया जायेगा तो प्रजा का संहार कर डालेंगे तथा बादशाह के उत्तराधिकारी को बागी कह कर आजीवन क़ैद कर लेंगे।" रंगमंच के माध्यम से इतिहास को एक अलग दृष्टि से जानने-समझने अनूठा प्रयोग भी है 'अलख आज़ादी की'।