Alochana Ka Janpaksh

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पत्र-पत्रिकाओं की फाइलों से ढूँढ़-ढाँद कर इस पुस्तक के लेखों का चयन किया गया है। एक तरह से यह दुर्लभ पुस्तक है। पहली बार पुस्तक रूप में इसके निबन्धों का संकलन किया गया है।

सामग्री की दृष्टि से इस पुस्तक का अवलोकन करने पर आप पाएंगे कि इसके तीन खण्ड हैं। पहला खण्ड मीमांसापरक निबन्धों का है अर्थात विवाद-संवाद के सैद्धान्तिक प्रश्नों की जाँच पड़ताल की गयी है। उदाहरण के लिए साहित्य में यवार्थ, साहित्यिक संकट का नारा, लेखक की स्वतन्त्रता और मार्क्सवाद, साहित्य में संयुक्त मोर्चा जैसे अनेक महत्त्वपूर्ण नये प्रश्नों पर चर्चा की गयी है।

दूसरे खण्ड के अन्तर्गत मूल्यांकनपरक निबन्ध और टिप्पणियाँ हैं। चन्द्रकान्ता सन्तति, प्रेमचन्द, मैथिलीशरण, निराला, त्रिलोचन, कवि रामविलास शर्मा, छायावादी गद्य, प्रगतिवाद, नयी कविता, मायाकोव्स्की, इलियट, ज्यूलियस, फ्यूचिक आदि पर विश्लेषण और चिन्तन के नये दिगन्तों का उद्घाटन है।

तीसरे खण्ड में जनवादी लेखक संघ और जनवादी साहित्यिक आन्दोलन से सम्बन्धित दुर्लभ और अमूल्य सामग्री है। इसी तीसरे दस्तावेज खण्ड में शिवमंगल सिंह सुमन के नाम लिखे गये चन्द्रबली सिंह के खुले खत का यथावत प्रकाशन किया जा रहा है।

ISBN
9788181430069
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