Amarbel Ki Udas Shakhen
अमरबेल की उदास शाखें -
कथाकार अमिय बिन्दु की कहानियाँ नव-उदारवाद की कालीन पर चहलक़दमी करते हुए हमारे समय के यथार्थ को बहुत शीतल आक्रोश के साथ पाठकों के सामने रखती हैं। लेकिन यहाँ यथार्थ सिर्फ़ रखा भर नहीं गया है, बल्कि उस यथार्थ के साथ एक ज़बरदस्त सृजनात्मक मुठभेड़ की गयी है। यह मुठभेड़ निरन्तर छीजते चले जा रहे सामाजिक-पारिवारिक सम्बन्धों और मानवीय रिश्तों की ऊष्मा को बचाने की ख़ातिर है। इस मुठभेड़ में चिन्तन और सर्जना का महीन व्याकरण है, आत्मीयता और अपनापे का मोहक वितान है और सबसे बड़ी बात कि कहन की शैली बहुत अनोखी है। यहाँ यथार्थ का वर्णन या उल्लेख भर नहीं मौजूद है, बल्कि यथार्थ की भीतरी परतों की संरचना में व्याप्त विसंगतियों को उद्घाटित करने की सूक्ष्म कटिबद्धताएँ भी व्याप्त हैं। उद्घाटन की इस प्रक्रिया में अमिय बिन्दु के भीतर का कथाकार बारम्बार व्याकुलता भरी करवटें बदलता है और पाठकों को उन दिशाओं में ले जाता है, जो पाठकों के लिए जानी-पहचानी तो होती हैं, लेकिन जिनके प्रति हम सभी प्राय: उदासीन होते जा रहे हैं। ये कहानियाँ इस उदासीनता पर बहुकोणीय प्रहार करती हैं, अपने परिवेश के तापमान को नापते हुए हमें अन्याय और ग़ैर-बराबरी के प्रति अक्सर आगाह करती हुई-सी लगती हैं और सघन आत्मीयता की कुछ बूँदों को सिरजने-सहेजने का जतन भी करती हैं। कहानियों में वर्णनात्मक बिन्दुओं पर कोई अनावश्यक नाटकीयता नहीं है, शिल्प साधने में किसी तरीक़े की हड़बड़ी या चमत्कार नहीं है और कहन में शानदार व सहज प्रवाह मौजूद है। कथाकार की भाषा बहुत प्रभावशाली है और परिवेश, पात्रों व उनके संवादों के अनुरूप उसे रसीली और भावप्रवण बनाये रखने के लिए उन्होंने अपनी कहानियों में अत्यन्त मार्मिक लगने वाले कुछ ऐसे सराहनीय प्रयोग किये हैं, जिन्हें देखकर उनकी क़िस्सागोई को मौलिक और सक्षम मानना पड़ता है। इससे हिन्दी कहानी में कोई न कोई सार्थक चीज़ जुड़ती अवश्य है। यह संग्रह धीमे-धीमे लेकिन सतत रूप से चल रहे और क्रमश: जटिल होते जा रहे समय को लिपिबद्ध करने की बेहद जुझारू कोशिश करता है।——प्रांजल धर