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अमृता - 
प्रसिद्ध गुजराती कथाकार रघुवीर चौधरी का 'अमृता' आधुनिक संवेदना का उपन्यास है। केवल तीन ही चरित्र है इसमें, जो विशिष्ट रचनानीति के द्वारा चक्रगति पाते हैं। महायुद्ध के बाद की अन्तर्बाह्य परिस्थितियों को अस्तित्ववाद और भारतीय दर्शन के सन्दर्भ में देख-परखकर लेखक ने प्रस्तुत रचना के माध्यम से अभिव्यक्ति की एक नयी धरा गढ़ी है।

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रघुवीर चौधरी (Raghuveer Chaudhary)

रघुवीर चौधरी

जन्म : 5 ​​दिसम्बर सन् 1938; बापुपुरा, महेसाणा (उत्तर गुजरात)।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी, संस्कृत), पीएच.डी. (भाषाविज्ञान)।

कृतियाँ : गुजराती में दर्जनों मौलिक कृतियाँ। कुछ-एक का सम्पादन-अनुवाद। प्रमुख है : काव्य—‘तमसा’, ‘वहेता वृक्ष पवनमाँ’; उपन्यास—‘गोकुल’, ‘मथुरा’, ‘द्वारिका’, ‘पूर्वराग’, ‘अमृता’, ‘आवरण’, ‘वेणु वत्सला’, ‘उपरवास कथा-त्रयी’, ‘लागणी’, ‘सोमतीर्थ’; कहानी-संग्रह—‘आकस्मिक स्पर्श’, ‘गेरसमज’; नाटक—‘अशोक वन’, ‘झूलता किनारा’, ‘सिकन्दर सानी’; एकांकी—‘डिम लाइट’; रेखाचित्र—‘सहरानी भव्यता’; समीक्षा—‘गुजराती नवलकथा’, ‘अद्यतन कविता’, ‘वार्ता-विशेष’, ‘दर्शकना देशमाँ’।

सम्मान : गुजरात शासन द्वारा ‘कुमार चन्द्र’, ‘रणजीतराम सुवर्णचन्द्र’, ‘उपरवास कथा-त्रयी’ के लिए केन्द्रीय ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ और ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित।

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