Anandghan
आनन्दघन -
आनन्दघन की कविता अतिरिक्त संवेदनशीलता, समझ और अध्ययन की अपेक्षा करती हैI इनकी कविता में भाषा के स्तर पर एक उच्च भाव तो है ही साथ ही गरिमा के सौन्दर्य की गूढ़ आवृति भी इनकी कविताओं का ही एक पक्ष हैI कवि ह्रदय की भाषा के काव्य बोध की शाश्वतता के साथ मिलकर इनका काव्य बोध एक आलाप में बदल जाता हैI यह प्रेम में मुक्ति का एक सन्देश भी सम्प्रेषित करता है जो वियोग श्रृंगार में परिवर्तित हो जाता है लेकिन यह वियोग श्रृंगार भी विशुद्ध माधुर्य रचता हैI वियोग वर्णन भी अधिकतर अन्तर्वृत्ति निरूपक है, बाह्मार्थ निरूपक नहीं। घनानन्द ने न तो बिहारी की तरह विरह-ताप को बाह्री माप से मापा है न बाहरी उछलकूद ही दिखाई है। जो कुछ हलचल है वह भीतर की है। इस संग्रह की कविताएँ पूर्ण रूप से रस, प्रीति और ब्रह्मा की अनुभूति प्राण करती हैंI पाठकों को यह संग्रह एक पाठकीय सन्तुष्टि प्रदान करता हैI