Andhayug Paath Aur Pradarshan
अंधायुग : पाठ और प्रदर्शन -
अंधायुग आधुनिक भारतीय साहित्य की एक ऐसी जीवन्त और महत्त्वपूर्ण कृति है जिसने हिन्दी नाटक एवं रंगकर्म को हल्के मनोरंजन तथा सतही नाटकों के स्तर से ऊपर उठाकर उसे गहन, गम्भीर, सार्थक, आधुनिक और जटिल संश्लिष्ट जीवन अनुभवों के प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति माध्यम के रूप में प्रतिष्ठित किया है। यह सत्यदेव दुबे, इब्राहिम अल्काज़ी, मोहन महर्षि, एम. के. रैना, रतन थियम और रामगोपाल बजाज जैसे प्रतिभा सम्पन्न निर्देशकों की कल्पनाशीलता तथा इस रचना में निहित अपरिमित रंग-सम्भावनाओं का ही परिणाम है कि अब तक यह काव्य-नाटक प्रायः सभी रचनाशील भारतीय निर्देशकों तथा अभिनेताओं द्वारा विविध भाषाओं और नाट्य-शैलियों में अभिमंचित होकर इस देश की बहुरूपी रंग-सम्पदा एवं प्रयोगधर्मिता को रेखांकित करनेवाला एकमात्र उल्लेखनीय नाटक बना हुआ है।
अंधायुग ने कविता और नाटक तथा पौराणिकता और आधुनिकता को सृजनात्मकता के एक ऐसे बिन्दु पर समन्वित किया है, जहाँ से मानव-जीवन और नियति से जुड़े शाश्वत प्रश्न अतीत, वर्तमान और भविष्य के तीनों कालायामों में एकसाथ बड़ी तीव्रता से उद्घाटित हो गये हैं।
गहन अध्ययन, सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि और अथक परिश्रम से लिखी गयी यह पुस्तक विशुद्ध नाट्य-कृति के रूप में अंधायुग का गम्भीर अध्ययन करने के साथ-साथ उसकी रंगमंचीय उपलब्धियों का गहन विवेचन भी करती है। 'अंधायुग' के बहुअर्थगर्भी नाट्य-पाठ के अतिरिक्त इसमें पहली बार पिछले पैंतीस वर्षों में प्रस्तुत इस नाटक के लगभग सभी देशव्यापी एवं बहुभाषी उल्लेखनीय प्रदर्शनों का प्रामाणिक लेखा-जोखा भी प्रस्तुत किया गया है।
अध्ययनशील रंगकर्मियों, जागरूक नाट्य-अनुसन्धाताओं और प्रबुद्ध अध्यापकों छात्रों के लिए समान रूप से उपयोगी पुस्तक। एक पठनीय एवं दस्तावेज़ी महत्त्व की संग्रहणीय पुस्तक।