Andora
अंडोरा -
स्विस नाटककार माक्स फ्रिश का नाटक 'अंडोरा' बीसवीं सदी के अन्तिम पचास वर्ष के यूरोपीय नाट्य साहित्य की महान् और मर्मस्पर्शी कृतियों में से एक है। आज लेखक की मृत्यु के सात वर्षों बाद इस नाटक का हिन्दी अनुवाद नयी दिल्ली में प्रकाशित हो रहा है, यह बात उस लेखक की अटूट जीवन्तता और विश्वसनीयता को सिद्ध करती है जिसने अपने जीवन काल में ही अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर ली थी। लेकिन भारत में फ्रिश हाशिये पर ही रहे। यहाँ पर 'अंडोरा' की अपेक्षा फ्रिश का आरम्भिक नाटक 'हेअर बीडरमान उंट ब्रांडश्टिफ्टर' अधिक प्रसिद्ध हुआ है। इसका कई भाषाओं में मंचन किया गया है लेकिन पुस्तक रूप में प्रकाशन नहीं हो सका है। 'बीडरमान' स्पष्ट और सीधी-सादी कृति है, उसके चरित्र तराशे हुए से लगते हैं। इसके विपरीत 'अंडोरा' गूढ़ है, निराशावादी है। इसके चरित्र टूटे, उलझे और विरोधाभासों से भरे हैं। पूरा नाटक दुःख और व्यर्थता की एक गूँज से भरा हुआ है। मात्र कलकत्ता में ही उनके अन्तिम वर्षों के नाटक 'बिओग्राफी' का मंचन हुआ था। 'अंडोरा' के प्रस्तुत हिन्दी अनुवाद का पुस्तक के रूप में प्रकाशन प्रतिकार और साहित्यिक दृष्टि से न्यायसंगत है। महान् स्विस लेखक माक्स फ्रिश का विशाल हिन्दीभाषी जनसमूह से परिचय कराया जाना हर्ष का विषय है।