Antral : Mahasamar-5 (Deluxe Edition)
महासमर - खण्ड - 5
महासमर का यह पाँचवाँ खण्ड है-'अंतराल' । इस खण्ड में, द्यूत में हारने के पश्चात पाण्डवों के वनवास की कथा है। कुन्ती, पाण्डु के साथ शत्-शृंग पर वनवास करने गयी थी। लाक्षागृह के जलने पर, वह अपने पुत्रों के साथ हिडिम्ब वन में भी रही थी। महाभारत की कथा के अन्तिम चरण में, उसने धृतराष्ट्र, गान्धारी तथा विदुर के साथ भी वनवास किया था।... किन्तु अपने पुत्रों के विकट कष्ट के इन दिनों में वह उनके साथ वन में नहीं गयी। वह न द्वारका गयी, न भोजपुर। वह हस्तिनापुर में विदुर के घर रही। क्यों?
पाण्डवों की पत्नियाँ-देविका, बलंधरा, सुभद्रा, करेणुमती और विजया, अपने-अपने बच्चों के साथ अपने-अपने मायके चली गयीं; किन्तु द्रौपदी काम्पिल्य नहीं गयी। वह पाण्डवों के साथ वन में ही रही। क्यों?
कृष्ण चाहते थे कि वे यादवों के बाहुबल से, दुर्योधन से पाण्डवों का राज्य छीनकर, पाण्डवों को लौटा दें, किन्तु वे ऐसा नहीं कर सके। क्यों? सहसा ऐसा क्या हो गया कि बलराम के लिए धृतराष्ट्र तथा पाण्डव, एक समान प्रिय हो उठे, और दुर्योधन को यह अधिकार मिल गया कि वह कृष्ण से सैनिक सहायता माँग सके और कृष्ण उसे यह भी न कह सकें कि वे उसकी सहायता नहीं करेंगे?
इतने शक्तिशाली सहायक होते हुए भी, युधिष्ठिर क्यों भयभीत थे? उन्होंने अर्जुन को किन अपेक्षाओं के साथ दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए भेजा था? अर्जुन क्या सचमुच स्वर्ग गये थे, जहाँ इस देह के साथ कोई नहीं जा सकता? क्या उन्हें साक्षात् महादेव के दर्शन हुए थे? अपनी पिछली यात्रा में तीन-तीन विवाह करनेवाले अर्जुन के साथ ऐसा क्या घटित हो गया कि उसने उर्वशी के काम-निवेदन का तिरस्कार कर दिया।
इस प्रकार के अनेक प्रश्नों के उत्तर निर्दोष तर्कों के आधार पर 'अंतराल' में प्रस्तुत किये गये हैं। यादवों की राजनीति, पाण्डवों के धर्म के प्रति आग्रह, तथा दुर्योधन की मदान्धता सम्बन्धी यह रचना पाठक के सम्मुख, इस प्रख्यात कथा के अनेक नवीन आयाम उद्घाटित करती है। कथानक का ऐसा निर्माण, चरित्रों की ऐसी पहचान तथा भाषा का ऐसा प्रवाह-नरेन्द्र कोहली की लेखनी से ही सम्भव है।
प्रख्यात कथाओं का पुनःसर्जन उन कथाओं का संशोधन अथवा पुनर्लेखन नहीं होता, वह उनका युग- सापेक्ष अनुकूलन मात्र भी नहीं होता। पीपल के वृक्ष से उत्पन्न प्रत्येक वृक्ष, पीपल होते हुए भी, स्वयं में एक स्वतन्त्र अस्तित्व होता है; वह न किसी का अनुसरण है, न किसी का नया संस्करण मौलिक उपन्यास का भी यही सत्य है।
मानवता के शाश्वत प्रश्नों का साक्षात्कार लेखक अपने गली-मुहल्ले, नगर-देश, समाचार-पत्रों तथा समकालीन इतिहास में आबद्ध होकर भी करता है; और मानव सभ्यता तथा संस्कृति की सम्पूर्ण जातीय स्मृति के सम्मुख बैठकर भी। पौराणिक उपन्यासकार के 'प्राचीन' में घिरकर प्रगति के प्रति अन्धे हो जाने की सम्भावना उतनी ही घातक है, जितनी समकालीन लेखक की समसामयिक पत्रकारिता में बन्दी हो, एक खण्ड-सत्य को पूर्ण सत्य मानने की मूढ़ता। सर्जक साहित्यकार का सत्य अपने काल-खण्ड का अंग होते हुए भी, खण्डों के अतिक्रमण का लक्ष्य लेकर चलता है।
नरेन्द्र कोहली का नया उपन्यास है 'महासमर'। घटनाएँ तथा पात्र महाभारत से सम्बद्ध हैं; किन्तु यह कृति एक उपन्यास है- आज के एक लेखक का मौलिक सृजन!