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Anya Se Ananya
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"प्रभा खेतान की अन्या से अनन्या एक ऐसी स्त्री की कथा है जो स्त्री की पुरानी छवियों को तोड़ते हुए, दूसरों की कसौटी पर खरा उतरने की जगह अपनी नैतिकता खुद गढ़ती है। उसके लिए प्रेम का अर्थ अपनी स्वतन्त्र पहचान को तिलांजलि देना नहीं है। पुरुष का प्रेम प्रायः स्त्री को अपनी वस्तु बनाकर रखना चाहता है, स्त्री का रास्ता आत्मबोध का हो सकता है।
यह आत्मकथा स्त्री के आत्मबोध को देह विमर्श और स्त्रीवाद की सीमारेखाओं को तोड़कर संस्कृति, राजनीतिक हलचलों और आर्थिक आत्मनिर्भरता के एक बड़े बौद्धिक परिसर में ले आती है। इन सभी जगहों पर अपमानों और उपेक्षाओं से मिली पीड़ा के जरिए पितृसत्तात्मक वर्चस्व को इस तरह उधेड़ा गया है कि प्रभा खेतान की आत्मकथा व्यक्तिगत नहीं रह जाती। यह स्त्री के आत्म-आविष्कार और उसके स्वत्व के उद्घोष की सार्वभौम कथा बन जाती है।
एक प्रतिष्ठित, लेकिन विवाहित डॉक्टर से स्त्री के प्रेम को समाज किस तरह कठघरे में खड़ा करता है, इसका कटु दंश झेलते हुए कोई स्त्री स्याह और सफ़ेद से बाहर अपनी नैतिकता किस तरह करुणा और विद्रोह के धागों से गढ़ती है, इसके बेबाक बिम्ब हैं प्रभा खेतान की इस आत्मकथा में। इसमें जैसे एक सभ्यता खुद चौराहे पर अपने कपड़े उतार रही हो। इसमें स्त्री अपने सदियों के भयों के साथ है तो मुक्त होकर जीने के साहस के साथ भी।
प्रभा खेतान ‘अन्या’ हैं, ‘दूसरी औरत' हैं और उसी पुरुष के द्वारा हाशिये पर रखी जाती हैं जिससे वह सबसे ज़्यादा प्रेम करती हैं। अन्या से अनन्या स्त्री के हाशिये से केन्द्र में आने की कथा है जिसमें वह बबूल के काँटे चबाकर अपने ‘होने’ को 'अर्थपूर्ण होने' में रूपान्तरित करती दिखती हैं। पितृसत्ता से विद्रोह करते हुए भी भारतीय स्थितियों में यह स्त्री मुक्ति और विवशता के बीच बहती एक बेचैन नदी है!
- शंभुनाथ
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Anya Se Ananya
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"प्रभा खेतान की अन्या से अनन्या एक ऐसी स्त्री की कथा है जो स्त्री की पुरानी छवियों को तोड़ते हुए, दूसरों की कसौटी पर खरा उतरने की जगह अपनी नैतिकता खुद गढ़ती है। उसके लिए प्रेम का अर्थ अपनी स्वतन्त्र पहचान को तिलांजलि देना नहीं है। पुरुष का प्रेम प्रायः स्त्री को अपनी वस्तु बनाकर रखना चाहता है, स्त्री का रास्ता आत्मबोध का हो सकता है।
यह आत्मकथा स्त्री के आत्मबोध को देह विमर्श और स्त्रीवाद की सीमारेखाओं को तोड़कर संस्कृति, राजनीतिक हलचलों और आर्थिक आत्मनिर्भरता के एक बड़े बौद्धिक परिसर में ले आती है। इन सभी जगहों पर अपमानों और उपेक्षाओं से मिली पीड़ा के जरिए पितृसत्तात्मक वर्चस्व को इस तरह उधेड़ा गया है कि प्रभा खेतान की आत्मकथा व्यक्तिगत नहीं रह जाती। यह स्त्री के आत्म-आविष्कार और उसके स्वत्व के उद्घोष की सार्वभौम कथा बन जाती है।
एक प्रतिष्ठित, लेकिन विवाहित डॉक्टर से स्त्री के प्रेम को समाज किस तरह कठघरे में खड़ा करता है, इसका कटु दंश झेलते हुए कोई स्त्री स्याह और सफ़ेद से बाहर अपनी नैतिकता किस तरह करुणा और विद्रोह के धागों से गढ़ती है, इसके बेबाक बिम्ब हैं प्रभा खेतान की इस आत्मकथा में। इसमें जैसे एक सभ्यता खुद चौराहे पर अपने कपड़े उतार रही हो। इसमें स्त्री अपने सदियों के भयों के साथ है तो मुक्त होकर जीने के साहस के साथ भी।
प्रभा खेतान ‘अन्या’ हैं, ‘दूसरी औरत' हैं और उसी पुरुष के द्वारा हाशिये पर रखी जाती हैं जिससे वह सबसे ज़्यादा प्रेम करती हैं। अन्या से अनन्या स्त्री के हाशिये से केन्द्र में आने की कथा है जिसमें वह बबूल के काँटे चबाकर अपने ‘होने’ को 'अर्थपूर्ण होने' में रूपान्तरित करती दिखती हैं। पितृसत्ता से विद्रोह करते हुए भी भारतीय स्थितियों में यह स्त्री मुक्ति और विवशता के बीच बहती एक बेचैन नदी है!
- शंभुनाथ
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