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Ardhviram

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"हमें अपनी कथा ज़रूर लिखनी चाहिए। कोई उसे पढ़कर समझेगा तो कोई अनदेखा करेगा। लेकिन एक दिन ज़माने को यह महसूस होगा कि इस कथा में उसकी दास्तान भी लिखी हुई है। कथा में ज़िन्दगी का जो ख़ज़ाना होता है वह किसी सोने की खान में भी नहीं मिलेगा। एक घर, एक परिवार, दोस्तों के एक छोटे से समूह और एक शहर में हमें सारे जगत का लघु रूप मिल जायेगा। जो किताबों से प्यार करते हैं, वयस्क होने के बाद भी बारिश में बचपन के काग़ज़ की नाव को न भूले हों, छल-छद्म को नापसन्द करते हैं और दुनियादारी में पिछड़े हुए हैं, उन्हें भी नॉर्मल इन्सान माना जाये। उनके भी अपनी तरह से जीने के अधिकार को मान्यता मिले। क्योंकि जब सरल स्वभाव का व्यक्ति संकल्पबद्ध होकर सबका सामना करने उतरता है तो किसी के रोके नहीं रुकता। स्ट्रीट स्मार्ट लोगों में कई गुण होते होंगे लेकिन वे शायद मन्द ध्वनियों और अन्तर्ध्वनि को नहीं सुन सकते हैं। जो इन ध्वनियों को सुनने की क्षमता रखते हैं उनका भी इस संसार में स्थान है। दुनिया में सब कुछ तो ख़ैर किसी को नहीं मिलेगा। न तो दुनियादारी में पारंगत व्यक्ति को और न ही इस कला में पिछड़े लोगों को। परन्तु जो कुछ प्राप्त है उस सहेजना कोई कम बड़ी चीज़ थोड़े ना है। साहित्य सृजन 'थैंक्सलेस जॉब' है। लेकिन इस जॉब को करने हेतु बहुत पढ़ना, समझना और विचार करना पड़ता है। जहाँ एक ओर जिन रिश्तों को दुनिया बेहद ख़ास समझती है वे लोभ, माया और अहम् रूपी दीमक के शिकार होकर अपनी परम्परागत परिभाषा से परे चले जाते हैं वहीं दूसरी तरफ़ अनजान लोगों से मिली अप्रत्याशित आत्मीयता इन्सानियत के अस्तित्व में विश्वास क़ायम रखती है। "
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Ardhviram
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Vani Prakashan
"हमें अपनी कथा ज़रूर लिखनी चाहिए। कोई उसे पढ़कर समझेगा तो कोई अनदेखा करेगा। लेकिन एक दिन ज़माने को यह महसूस होगा कि इस कथा में उसकी दास्तान भी लिखी हुई है। कथा में ज़िन्दगी का जो ख़ज़ाना होता है वह किसी सोने की खान में भी नहीं मिलेगा। एक घर, एक परिवार, दोस्तों के एक छोटे से समूह और एक शहर में हमें सारे जगत का लघु रूप मिल जायेगा। जो किताबों से प्यार करते हैं, वयस्क होने के बाद भी बारिश में बचपन के काग़ज़ की नाव को न भूले हों, छल-छद्म को नापसन्द करते हैं और दुनियादारी में पिछड़े हुए हैं, उन्हें भी नॉर्मल इन्सान माना जाये। उनके भी अपनी तरह से जीने के अधिकार को मान्यता मिले। क्योंकि जब सरल स्वभाव का व्यक्ति संकल्पबद्ध होकर सबका सामना करने उतरता है तो किसी के रोके नहीं रुकता। स्ट्रीट स्मार्ट लोगों में कई गुण होते होंगे लेकिन वे शायद मन्द ध्वनियों और अन्तर्ध्वनि को नहीं सुन सकते हैं। जो इन ध्वनियों को सुनने की क्षमता रखते हैं उनका भी इस संसार में स्थान है। दुनिया में सब कुछ तो ख़ैर किसी को नहीं मिलेगा। न तो दुनियादारी में पारंगत व्यक्ति को और न ही इस कला में पिछड़े लोगों को। परन्तु जो कुछ प्राप्त है उस सहेजना कोई कम बड़ी चीज़ थोड़े ना है। साहित्य सृजन 'थैंक्सलेस जॉब' है। लेकिन इस जॉब को करने हेतु बहुत पढ़ना, समझना और विचार करना पड़ता है। जहाँ एक ओर जिन रिश्तों को दुनिया बेहद ख़ास समझती है वे लोभ, माया और अहम् रूपी दीमक के शिकार होकर अपनी परम्परागत परिभाषा से परे चले जाते हैं वहीं दूसरी तरफ़ अनजान लोगों से मिली अप्रत्याशित आत्मीयता इन्सानियत के अस्तित्व में विश्वास क़ायम रखती है। "
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मनीष कुमार सिंह (Manish Kumar Singh)

"मनीष कुमार सिंह : पहली कहानी 1987 में 'नैतिकता का पुजारी' लिखी। क़रीब डेढ़ सौ कहानियाँ, दो दर्जन लघुकथाएँ और दो उपन्यास लिखे हैं। रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं यथा- 'हंस', 'नया ज्ञानोदय', 'कथादेश', 'कथाक्रम', 'समकालीन भारतीय साहित्य', 'पाखी', 'भाषा', 'पुस्तक वार्ता', ‘दैनिक भास्कर’, ‘नयी दुनिया', 'नवनीत', 'शुभ तारिका', 'अक्षरपर्व', 'अक्षरा', 'लमही', ‘परिकथा', ‘शब्दयोग', 'साक्षात्कार' इत्यादि में कहानियाँ और लघुकथाएँ प्रकाशित। राजभाषा हिन्दी पर लिखे निबन्ध 'राजभाषा भारती' और 'गवेषणा' पत्रिकाओं में प्रकाशित। प्रकाशित पुस्तकें : कहानी-संग्रह : ‘आख़िरकार’ (2009), ‘धर्मसंकट’ (2009), ‘अतीतजीवी’ (2011), ‘वामन अवतार’ (2013), ‘आत्मविश्वास’ (2014), ‘साँझी छत’ (2017), और ‘विषयान्तर’ (2017); उपन्यास : ‘आँगन वाला घर’ (2017) और ‘मध्यान्तर’ (2022)। पुरस्कार : जयपुर साहित्य संगीति के द्वारा 2021-22 के लिए उपन्यास विधा में मध्यान्तर को पुरस्कृत किया गया। 26 जून, 2021 को भारत सरकार, संस्कृति मन्त्रालय के तत्वाधान में आयोजित पहली बार 'लेखक से मिलिए' कार्यक्रम में आमन्त्रित किया गया। जहाँ बतौर लेखक अपनी रचनाओं और साहित्य यात्रा का वर्णन किया। कथादेश लघुकथा प्रतियोगिता, 2015 में मेरी लघुकथा शरीफ़ों का मुहल्ला पुरस्कृत। ई-कल्पना पत्रिका के द्वारा आयोजित जुलाई 2019 कहानी प्रतियोगिता में मेरी कहानी सोयी हुई गली और जनवरी 2020 में अँधेरे की परछाइयाँ प्रथम पुरस्कार से सम्मानित। "

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