Arghan

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अरघान - 
सृजनात्मकता किसी नियम का पालन नहीं करती बल्कि यह कहना ज़्यादा सही होगा कि यह अपने नियम स्वयं बनाती हैI सर्जना का पथ और अनुभूति दोनों अभूतपूर्व हैंI कोई भी रचना अपना समय, काल, उद्देश्य और कला का रूप चुनती है और यही उसकी अपनी विशिष्ट पहचान भी बन जाती हैI त्रिलोचन सहज ही अपनी पहचान बनाते हैंI आज हिन्दी में शायद ही कोई साधक हो जो हिन्दी की परम्परा से इतना सुपरिचित हो जितना त्रिलोचनI परम्परा में इतना रमने के बावजूद रचना में अभूतपूर्वता लाना यानी परम्परा का यथोचित त्याग निर्मम साधना है। त्रिलोचन मार्मिकता प्रायः वहाँ देखते, दिखाते हैं जहाँ सामान्यतः लोग ठहर कर देखते भी नहीं। जब वे कविता में किसी जानी पहचानी स्थिति का भी चित्रण करते हैं तो उसे नये बोध से भर देते हैं। त्रिलोचन की कविताएँ समझने के लिए केवल उनकी लिखी पंक्तियाँ ही नहीं पढ़ी जा सकती बल्कि उन पंक्तियों के सौन्दर्य को आत्मसात किया जाता है तभी उनका अर्थ पाठकों को प्राप्त होगाI उनकी पंक्तियों में जो तरावट है वह एक क़िस्म का कसाव उत्पन्न करती है जिसमें संयम का आकाश तो है ही साथ ही भाषा और छन्द में कसी स्थितियाँ ही रूपायित होती हैं। इसीलिए यहाँ 'रूप' है 'रूपवाद' नहीं। त्रिलोचन की शिल्प-साधना, स्थिति योजन की ही साधना है।

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9789350008911
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