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Vani Prakashan

Aur Ant Mein

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..परसाई जी की रचनायें राजनीति, साहित्य, भ्रष्टाचार, आजादी के बाद का ढोंग, आज के जीवन का अन्तर्विरोध, पाखण्ड और विसंगतियों को हमारे सामने इस तरह खोलती हैं जैसे कोई सर्जन चाकू से शरीर काट-काट कर गले अंग आपके सामने प्रस्तुत करता है। उनका व्यंग्य मात्र हँसाता नहीं है, वरन् तिलमिलाता है और सोचने को बरबस बाध्य कर देता है। कबीर जैसी उनकी अवधूत और निःसंग शैली में उनका जीवन चिन्तन मुखर हुआ है। उनके जैसा मानवीय संवेदना में डूबा हुआ कलाकार रोज़ पैदा नहीं होता। ...आज़ादी के पहले का हिन्दुस्तान जानने के लिए जैसे सिर्फ़ प्रेमचन्द पढ़ना ही काफी है, उसी तरह आज़ादी के बाद भारत के पूरे दस्तावेज़ परसाई की रचनाओं में सुरक्षित हैं। चश्मा लगाकर 'रामचन्द्रिका' पढ़ाने वाले पेशेवर हिन्दी के ठेकेदारों के बावजूद, परसाई का स्थान हिन्दी में हमेशा-हमेशा के लिए सुरक्षित है। -रवीन्द्रनाथ त्यागी

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