
Dhoomil
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"धूमिल - धूमिल युवा पीढ़ी के विशिष्ट कवि के रूप में उभर कर सामने आये थे। वे सुदामा पाण्डेय के नाम से भी जाने जाते थे। उनका जन्म 9 नवम्बर, 1936 की वाराणसी के खेवली नामक गाँव में हुआ था। 1958 में आपने हाई स्कूल को परीक्षा उत्तीर्ण की। पितामह, पिता और चाचा की मृत्यु हो जाने के कारण एक बड़े परिवार के पालन-पोषण का भार आपके ऊपर आ पड़ा। इस दायित्व का निर्वाह करने के लिए आपने कलकत्ता में लोहा ढोने का काम किया। डेढ़ वर्ष तक मेमर्स तलवार ब्रदर्स प्रा. लि. में 'पासिंग आफ़िसर' की नौकरी की, किन्तु अपमान के कारण नौकरी छोड़ दी और 1958 में आई.टी.आई. वाराणसी से विद्युत डिप्लोमा किया। वहीं आपकी नियुक्ति हो गयी। फिर तबादले होते रहे और अधिकारियों के हाथों कष्ट सहते रहे। 10 फ़रवरी, 1975 को ब्रेन ट्यूमर के कारण लखनऊ में उनकी मृत्यु हुई। धूमिल के जीवन काल में उनका एक ही कविता संग्रह 'संसद से सड़क तक' प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में उनकी 1966 से 1970 के बीच लिखित कविताएँ संगृहीत थीं। इस संग्रह की बहुत अधिक चर्चा हुई और इसने धूमिल को कवि के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। 1975 में मध्य प्रदेश शासन साहित्य परिषद् ने आपको मुक्तिबोध पुरस्कार दिया। 1977 में उनकी पत्नी श्रीमती मूरत के आर्थिक सहयोग से आपका दूसरा कविता संग्रह 'कल सुनना मुझे' प्रकाशित हुआ। यह संग्रह साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत है। धूमिल का तीसरा कविता संग्रह 'सुदामा पांडे का प्रजातन्त्र' 1984 में उनके पुत्र रत्नशंकर ने सम्पादित संकलित करके छपवाया। डॉ. शुकदेव सिंह के सम्पादन में उनका एक अन्य कविता संग्रह 'धूमिल की कविताएँ' (1983) प्रकाशित हुआ है। जिस समय धूमिल ने कविता लिखना आरम्भ किया, साहित्य-रचना का वह समय आन्दोलनों की अराजक बाढ़ का समय रहा जिसमें मुख्यतः कविता प्रधान आन्दोलन- सनातन सूर्योदयी कविता, अपरम्परावादी कविता, अन्यथावादी कविता, सीमान्त कविता, युयुत्सावादी कविता अस्वीकृत कविता, अकविता, सकविता, अभिनव कविता, अधुनातन कविता इत्यादि रहे। इससे लोगों का विश्वास लगभग उठ गया था। उस वक़्त कविता चीज़ों को एक अन्धी सुरंग से बाहर निकालकर नंगा करने के लिए काफ़ी बदनाम थी। धूमिल ने कविता को धुन्ध से बाहर निकालकर, नाम लेकर आवाज़ देती हुई चीज़ों को अपने होने की पूरी सच्चाई के साथ ऊब को आकार दिया। ये मार्क्सवाद से प्रभावित तो हुए लेकिन मार्क्स का रसोइया नहीं बने। "