
Khwaza Hasan Nizami
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"ख़्वाजा हसन निज़ामी मरहूम ख़्वाजा हसन निज़ामी का जन्म इस्लामी पंचांग के अनुसार 2 मुहर्रब 1296 हिजरी (तद्नुसार 1876 ई. के आसपास) को हुआ था। उनके नाना हजरत ख़्वाजा गुलाम हसन, न सिर्फ 1857 के गदर के दौरान जीवित थे, बल्कि जब हुमायूँ के मकबरे से बहादुरशाह ज़फ़र को अंग्रेज़ी फौज ने गिरफ़्तार किया, तब वे वहाँ मौजूद भी थे। निजामी साहब ने लगभग 80 वर्ष की उम्र पाई और इस लम्बी उम्र में उन्होंने अध्यात्म और इतिहास की बहुत-सी किताबें लिखीं, जिनकी संख्या सैकड़ों में है। कुरान का पहला हिंदी तर्जुमा उन्होंने ही किया था और खुद ही प्रकाशित किया था। कृष्ण और नानक की जीवनियाँ भी उन्होंने उर्दू में लिखी थीं, जो अपने समय में काफी लोकप्रिय हुई थीं। निजामी साहब पर वेदांत दर्शन का गहरा असर था और उससे प्रेरित होकर पैगम्बरुल इस्लाम के बारे में उन्होंने एक रचना 'मन के इक धोबी' शीर्षक से रची थी, जिसमें हजरत मोहम्मद को धोबियों का चौधरी कहा गया है। इस धोबी से आशय उस दिव्यत्व से है, जो आदमी के बाहर-भीतर का सारा मैल धो दे। दिलचस्प बात यह है कि अभी हाल में पाकिस्तान सरकार ने निजामी साहब की उक्त रचना पर पाबंदी लगा दी है। "