Baaki Dhuan Rahne Diya

In stock
Only %1 left
SKU
9788126314300
Rating:
0%
As low as ₹144.40 Regular Price ₹152.00
Save 5%
"बाकी धुआँ रहने दिया - पिछले कुछ वर्षों में मीडिया, बाज़ार, विज्ञापन, अपराध और राजनीतिक सत्ताओं द्वारा हमारा मानवीय सामाजिक—नागरिक यथार्थ जितना क्षतिग्रस्त हुआ है, उससे कहीं अधिक तहस-नहस हुआ है यथार्थ के बोध, संज्ञान, चेतना और स्मृति का इलाक़ा। ज़ाहिर है भाषा इस विध्वंस का सबसे पहली शिकार हुई है। भाषा की समस्त संरचनाएँ शब्द और विधाएँ जिस तरह आज हताहत और 'डिफ़ेक्ट' हैं, उतनी शायद ही किसी और दौर में रही हों, क्योंकि हम सब जानते हैं कि यह विध्वंस सभ्यतामूलक है। यानी इन तारीख़ों में हम हर रोज़ अपने आपको अचानक ही एक नयी सभ्यता और उसकी सत्ता का नागरिक या उपनिवेश बनते हुए लाचारी में देखते हैं। विचार से लेकर राजनीति और कलाओं तक की पिछली संरचनाएँ अचानक अपने सारे पाखण्ड, फ़रेब, संकीर्णता और नीयत के साथ हमारे सामने बेपरदा खड़ी दिखाई देने लगती हैं। बिना किसी 'मास्क' और 'मिथ' के। राकेश मिश्र की विलक्षण कहानियाँ ठीक इसी संक्रान्त काल के उन पलों को भाषा में दर्ज करने का प्रयत्न करती हैं, जिन पलों में इतिहास और स्मृति, शब्द और अर्थ, राजनीति और विचार, मिथक और यथार्थ एक दूसरे के संहार के लिए हर रोज़ हमारे सामने नये रूपक रचते हैं। जब हम अचानक अपने आपको इस दुविधा में घिरा पाते हैं कि नमक के बदले हुए स्वाद को दुबारा किस चीज़ से नमकीन बनाया जाय, पानी से अलग हो चुकी तृप्ति और प्यास को दुबारा पानी तक कैसे लौटाया जाय, चारों ओर दिखते वस्तु जगत को किसी तरीके से उसकी वास्तविकता वापस दी जाय। और यह कि कहानियों में उनकी कहानी और क़िस्सागोई बचाकर किस हिफ़ाज़त के साथ उन्हें वापस सौंपी जाय। ज़ाहिर है ऐसे में कोई औसत दर्जे की प्रतिभा नये मुल्लों की तरह 'अतिरंजित' औज़ारों और युक्तियों का प्रयोग करती है और अन्ततः अपना ही विनाश करती है। राकेश मिश्र अपने समकालीनों से ठीक इसी बिन्दु पर अलग होते हैं। 'तक्षशिला में आग', 'पृथ्वी का नमक', 'राजू भाई डॉट कॉम' और 'शह और मात' जैसी कहानियों के एक-एक वाक्य, उनके बिम्ब और कथात्मक छवियाँ जिस तल्लीनता, मेहनत और विदग्धता के साथ रची गयी हैं, उनमें सिनेमा और स्मृति या 'मिस्टीक' और असलियत का दुर्लभ विडम्बनाओं से भरा कौतुक और जादू एक साथ मौजूद है। राकेश की कहानियाँ सिर्फ़ भाषा का उपद्रव और लापरवाह शब्दों की चमकदार लफ़्फ़ाज़ी नहीं हैं। वे समकालीन कथालेखन में किसी बातूनी 'वीज़े' का कॉमर्शियल 'चैटर' नहीं है, जिसकी भाषा और विन्यास को 'कट' करके क्रिकेट कमेंट्री विज्ञापन से लेकर सोप ऑपेरा और सत्ता-राजनीति के चालू 'विमर्शों' तक कहीं भी पेस्ट कर दिया जाय। ये कहानियाँ हमारे समय, यथार्थ और चेतना के गहरे और मारक उद्वेलन की मार्मिक विडम्बनाओं की यादगार कहानियाँ हैं। एक ऐसे सत्ताविहीन और लाचार युवा रचनाकार की कहानियाँ जो अपने समय में प्यार से लेकर 'पॉवर पॉलिटिक्स' तक के ईमानदार अनुभवों को उनकी सम्पूर्ण बहुआयामिता और अन्तर्द्वन्द्वों के साथ किसी क़िस्से में तब्दील करता है, उन्हें हलके-फुलके 'गॉसिप' में विसर्जित होने से बचाते हुए। और यह कोई आसान काम नहीं है। पहले प्रेम के गहरे एकान्त क्षणों में अचानक बज उठने वाले 'मोबाइल' की तरह राकेश मिश्र की कहानियाँ अपने पहले 'पाठ' में 'शॉक' और फिर अन्य 'पाठों' में उन दुर्घटनाओं और बड़ी विडम्बनाओं से हमारा साक्षात्कार कराती हैं, जो फ़िलहाल कहीं और दुर्लभ है। ये कहानियाँ एक अत्यन्त सम्भावनापूर्ण, स्मृति और अन्तर्दृष्टि सम्पन्न युवा कथाकार की अविस्मरणीय कहानियाँ हैं। अपने होने का महत्त्व वे स्वयं स्थापित करेंगी, इसका पूरा विश्वास मुझे है।—उदय प्रकाश "
ISBN
9788126314300
sfasdfsdfadsdsf
Write Your Own Review
You're reviewing:Baaki Dhuan Rahne Diya
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/