Publisher:
Vani Prakashan

Baal Ginuva

In stock
Only %1 left
SKU
Baal Ginuva
Rating:
0%
As low as ₹213.75 Regular Price ₹225.00
Save 5%

उत्तराखण्ड के दूरदराज गाँव से सात समुद्र पार मध्य अमरीका के केन्सस विश्वविद्यालय और अस्पताल तक फैले गिनुवा का कथा-क्षेत्र बड़ा व्यापक है। कोमा से उभरी वृद्धा माँ और मात्र चौदह माह पहले मिली बेटी के बीच की कशमकश में कथा आरम्भ होती है और उसको जानने के उपक्रम में कथा का विस्तार संक्षेप में कथा यह है कि कोमा से लौटने पर वृद्धा माँ कुछ और ही भाषा में बोलती है और उस मनःस्थिति में वह न तो बेटी को और न अपने को पहचानती है बल्कि उसकी चेतना वर्षों पूर्व अपने बचपन में चली जाती है जहाँ उसे एक दिन खेलते हुए अटका हुआ रंगीन गिनुवा (बॉल) मिला था और कैसे एक गोरा-चिट्टा लड़का उससे वह गिनुवा छीनना चाहता था जिसे वह यह मान बैठी थी कि उसके स्वर्गस्थ पिता ने उसके लिए भिजवाया है और किसी भी कीमत पर देना नहीं चाहती। इसी के चलते वह गोरे लड़के को धक्का दे देती है जिस पर उसका दूरदराज का मामा (जिसकी वह आश्रिता थी) उसे जोरदार तमाचे जड़ देता है, तभी बच्चे की मेम माँ आ जाती है और अपने बच्चे से गिनुवा उसे अपनी बहन को देने को कहती है और इसी क्रम में वह भी उस गाँव से मध्य अमरीका पहुँच जाती है। अनेक अन्तःकथाओं और उपकथाओं से उपन्यास का कलेवर निर्मित हुआ है जिनमें दो भिन्न संस्कृतियों, समाजों के आचार-विचार और व्यवहार ही नहीं बल्कि दो व्यक्तियों की प्रेम कहानी भी है। यथार्थ और कल्पना का ऐसा सम्मिश्रण कि वह वास्तविक लगने लगे किस्सागो जोशी जी की विशेषता है। इस संक्षिप्त से कथानक में भी पात्रों के अन्तर्द्वन्द्व, संघर्ष, भावों के उतार-चढ़ाव, शंका और दुश्चिन्ता को बखूबी उतारा है। इसे पढ़ते हुए मन में यही कसक रह जाती है कि काश वे इसे पूरा कर पाते। अपनी अपूर्णता में भी समग्रता को समेटे यह ‘गिनुवा' सुधी पाठकों के समक्ष है। वे ही निर्णायक हैं। भवदीया भगवती जोशी

ISBN
Baal Ginuva
Publisher:
Vani Prakashan
More Information
Publication Vani Prakashan
मनोहर श्याम जोशी (Manohar Shyam Joshi )

मनोहर श्याम जोशी 

जन्म : 9 अगस्त, 1933 को अजमेर में।

लखनऊ विश्वविद्यालय के विज्ञान स्नातक मनोहर श्याम जोशी ‘कल के वैज्ञानिक’ की उपाधि पाने के बावज़ूद रोज़ी-रोटी की ख़ातिर छात्र-जीवन से ही लेखक और पत्रकार बन गए। अमृतलाल नागर और अज्ञेय—इन दो आचार्यों का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ। स्कूल मास्टरी, क्लर्की और बेरोज़गारी के अनुभव बटोरने के बाद 21 वर्ष की उम्र से वह पूरी तरह मसिजीवी बन गए।

प्रेस, रेडियो, टी.वी. वृत्तचित्र, फ़िल्म, विज्ञापन-सम्प्रेषण का ऐसा कोई माध्यम नहीं जिसके लिए उन्होंने सफलतापूर्वक लेखन-कार्य न किया हो। खेल-कूद से लेकर दर्शनशास्त्र तक ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर उन्होंने क़लम न उठाई हो। आलसीपन और आत्मसंशय उन्हें रचनाएँ पूरी कर डालने और छपवाने से हमेशा रोकता रहा है। पहली कहानी तब छपी जब वह अठारह वर्ष के थे लेकिन पहली बड़ी साहित्यिक कृति तब प्रकाशित करवाई जब सैंतालीस वर्ष के होने को आए।

केन्द्रीय सूचना सेवा और टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह से होते हुए सन् ’67 में हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन में ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सम्पादक’ बने और वहीं एक अंग्रेज़ी साप्ताहिक का भी सम्पादन किया। टेलीविज़न धारावाहिक ‘हम लोग’ लिखने के लिए सन् ’84 में सम्पादक की कुर्सी छोड़ दी और तब से आजीवन स्वतंत्र लेखन करते रहे।

प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : ‘कुरु-कुरु स्वाहा’, ‘कसप’, ‘हरिया हरक्यूलीज की हैरानी’, ‘हमज़ाद’, ‘क्याप’, ‘ट-टा प्रोफ़ेसर’ (उपन्यास); ‘नेताजी कहिन’ (व्यंग्य); ‘बातों-बातों में’ (साक्षात्कार); ‘एक दुर्लभ व्यक्तित्व’, ‘कैसे क़िस्सागो’, ‘मन्दिर घाट की पैड़ियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘आज का समाज’ (निबन्ध); ‘पटकथा-लेखन : एक परिचय’ (सिनेमा)। टेलीविज़न धारावाहिक : ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’, ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’, ‘कक्काजी कहिन’, ‘हमराही’, ‘ज़मीन-आसमान’। फ़िल्म : ‘भ्रष्टाचार’, ‘अप्पू राजा’ और ‘निर्माणाधीन ज़मीन’।

सम्मान : उपन्यास ‘क्याप’ के लिए वर्ष 2005 के ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ सहित ‘शलाका सम्मान’ (1986-87); ‘शिखर सम्मान’ (अट्टहास, 1990); ‘चकल्लस पुरस्कार’ (1992); ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ (2000) आदि।

निधन : 30 मार्च, 2006

Write Your Own Review
You're reviewing:Baal Ginuva
Your Rating
Copyright © 2025 Vani Prakashan Books. All Rights Reserved.

Design & Developed by: https://octagontechs.com/