Baat Ye Hai Ki
बात यह है कि... किताब का शीर्षक, कुछ ख़ास तरह की स्मृतियों से छनकर आया है। दरअसल, मनोहर श्याम जोशी जब किसी विषय, मुद्दे या किसी संदर्भ पर ठिठकते, थोड़ा सोचते और फिर बोलते– बात यह है कि...। यह उनका बाज़ वक़्ती (कभी-कभार का) तकिया कलाम था। 'बात ये है कि..' कहते हुए वो दुनिया-जहान के किसी भी विषय, किसी भी सूत्र, किसी भी सोच, किसी भी मसले, किसी भी किताब या सेलीब्रेटी या सियासत या समाज आदि पर बेबाक और बेतक़ल्लुफ़ लहज़े में बोल सकते थे। वो अपने आपमें इनसाइक्लोपीडिया थे। खिलंदड़ी ज़बान के ज़रिए, वो सामाजिक मूल्यहीनता के धुर्रे उड़ा देते थे। फ़ैशन, फ़िल्म, सेक्स, सनसेक्स, टी.वी. सीरियल से लेकर पुस्तक, कविता, उपन्यास, नाटक, यहाँ तक कि अध्यात्म पर भी किसी अध्येता, किसी चिंतक, किसी समाजशास्त्री और किसी आलोचक की तरह साधिकार लिख सकते थे।