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बारह भावना
भक्तिकाल के जैन हिन्दी कवियों का सबसे महत्वपूर्ण योगदान यह रहा है कि उन्होंने जैन धर्म की लोक-कल्याणकारी सहिताओं का मंचन करके उनका नवनीत लोकभाषा के माध्यम से सामान्य पाठक को उपलब्ध कराया। सनातनः धर्म के सन्दर्भ में गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास और मीराबाई का जो योगदान रहा है, जैन धर्म के सन्दर्भ में वहीं और उसी स्तर का अवदान महाकवि बुधजन, बनारसीदास, भूधरदास, दौलतराम, भैया भगवतीदास, घानतराय आदि कवियों से जैन साहित्य को मिला है।
धर्माराधना के प्रथम चरण में द्वादश अनुप्रेक्षाओं या बारह भावनाओं का सर्वोपरि महत्त्व माना गया है। कविवर भूधरदास के दोहों में उपलब्ध इन भावनाओं का स्वरूप जैनों के घर-घर में नित्य पढ़ा, सुना और दोहराया जाता है। शायद ही कोई ऐसा जैन हो जिसने कभी-न-कभी ये दोहे न सुने हो । अधिकतर तो छोटे-बड़े स्त्री-पुरुष सभी को ये चौदह दोहे कण्ठस्थ होते हैं। उन्ही प्रसिद्ध दोहों के आधार पर इस छोटी-सी पुस्तक में बारह भावनाओं की एक संक्षिप्त विवेचना आपके समक्ष प्रस्तुत है।
भगवान महावीर के 2600वें जन्म-कल्याणक वर्ष में महावीर के उपदेशों को जन-जन तक पहुंचाने की भावना से बारह भावनाओं पर यह चिन्तन आज अपने पाठकों तक पहुंचाने में मुझे सन्तोष और गौरव की अनुभूति हो रही है। आशा है इस पर आपकी प्रतिक्रिया मुझे प्राप्त होगी।
इस सामयिक और सुन्दर प्रकाशन के लिए भारतीय ज्ञानपीठ के प्रबन्ध-न्यासी साहू श्री रमेश चन्द्र जी तथा मानद निदेशक श्री दिनेश मित्र के प्रति में आभार व्यक्त करता है।
- नीरज जैन

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